पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस दिन की गई पूजा से भक्तों को विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, चंद्र देव और भगवान शिव की आराधना इस दिन अत्यंत शुभ मानी जाती है। चंद्रमा और भगवान शिव का संबंध बहुत प्राचीन और गहरा है। पुराणों के अनुसार, राजा दक्ष की 27 पुत्रियाँ थीं, जिनका विवाह उन्होंने चंद्र देव से किया था। परंतु चंद्रमा को रोहिणी अत्यंत प्रिय थी, इसलिए वह उसी का अधिक ध्यान रखते थे। यह देखकर अन्य पत्नियाँ दुखी हो गईं और उन्होंने राजा दक्ष से शिकायत की। क्रोधित होकर राजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया, जिससे उसकी चमक धीरे-धीरे क्षीण होने लगी और वह दुर्बल होता गया। तब नारद मुनि ने चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने की सलाह दी। चंद्रमा ने श्रद्धा से शिव की भक्ति की और उनके आशीर्वाद से पुनः स्वस्थ हो गए। फिर उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि वे उसे अपने मस्तक पर उन्हें धारण करें। भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की। तभी से शिव के मस्तक पर चंद्रमा प्रतिष्ठित हैं, और चंद्रमा का घटना-बढ़ना जीवन चक्र का प्रतीक माना जाता है। उसका क्षीण होना वृद्धावस्था और मृत्यु का संकेत है, जबकि उसका पुनः विकसित होना नए जीवन, उन्नति और आशा का प्रतीक माना जाता है।
चंद्रमा और भगवान शिव के इस संबंध के कारण चंद्रमा को "मृत्यु संहारकाय" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है—"जो मृत्यु को परास्त करता है"। भगवान शिव की पूजा महामृत्युंजय मंत्र से की जाती है, और उन्हें भी मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। अतः दोनों मिलकर मृत्यु पर नियंत्रण और जीवन की सुरक्षा के प्रतीक माने जाते हैं। इसलिए वैशाख पूर्णिमा के दिन चंद्र देव और भगवान शिव की संयुक्त पूजा मन और शरीर दोनों के लिए अत्यंत कल्याणकारी मानी जाती है। ज्योतिष अनुसार, चंद्रमा के स्वामी भगवान शिव ही हैं, और उनकी आराधना से चंद्र दोष से उत्पन्न मानसिक अशांति, चिंता और भावनात्मक अस्थिरता शांत होती है। निशित काल रात का सबसे शक्तिशाली समय होता है, जब दिव्य शक्तियाँ अपनी चरम अवस्था में होती हैं, जिससे यह समय आध्यात्मिक साधना और मंत्र जाप के लिए अत्यधिक प्रभावी होता है। इस समय में की गई पूजा को अत्यधिक फलदायक माना जाता है, क्योंकि इस समय धरती और दिव्यता के बीच का परदा सबसे पतला होता है। इसलिए, इस पवित्र वैशाख पूर्णिमा के दिन श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर निशित काल में 11,000 महामृत्युंजय मंत्र जाप, 10,000 चंद्र बीज मंत्र जाप और हवन का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान शिव और चंद्र देव का आशीर्वाद प्राप्त करें।