सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। पितृ पक्ष का समापन महालया अमावस्या पर होता है, जो पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत शुभ समय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज स्वर्ग से धरती पर अपने प्रियजनों को आशीर्वाद देने के लिए उतरते हैं। इस अवधि के दौरान तर्पण, पिंड दान और गंगा आरती के अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है, क्योंकि ये अनुष्ठान पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए किए जाते हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, पितृ दोष हमारे पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं और नकारात्मक कर्मों के कारण उत्पन्न होता है। इस दोष से प्रभावित लोगों को अक्सर आर्थिक समस्याओं, रिश्तों में कलह और लगातार स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितृ पक्ष के दौरान प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व होता है, लेकिन महालया अमावस्या को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में सर्व पितृ अमावस्या के विशेष महत्व पर प्रकाश डाला गया है, क्योंकि इसे वर्ष भर में पड़ने वाली 12 अमावस्या तिथियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि महालया अमावस्या पर पितृ दोष शांति महापूजा करने से इस दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन यदि कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के लिए पूर्ण समर्पण और उचित विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करता है, तो माना जाता है कि इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे तृप्त अवस्था में अपने पितृलोक में वापस लौट सकते हैं।
जो लोग किसी कारणवश पितृ पक्ष के 15 दिनों में श्राद्ध नहीं कर पाते हैं या अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि से ज्ञात नहीं होता है, वे इस दिन अपने सभी पूर्वजों के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान कर सकते हैं। इसलिए इसे सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से जाना जाता है। यदि यह पूजा मोक्ष नगरी काशी के पिशाच मोचन कुंड में की जाए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि पिशाच मोचन कुंड पर पितृ के निमित्त श्राद्ध करने का अधिक महत्व है। वहीं काशी खंड के अनुसार, पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थस्थल की उत्पत्ति मां गंगा के धरती पर अवतरण से भी पहले की है। सदियों से देश भर से भक्त अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और पितृ दोष शांति महापूजा करने के लिए काशी के इस कुंड में आते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में महालया अमावस्या के शुभ अवसर पर काशी के पिशाच मोचन कुंड में पितृ दोष शांति महापूजा एवं गंगा आरती का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और पितृ शांति एवं पारिवारिक क्लेश से मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं।