ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों और नक्षत्रों का विशेष महत्व है। कुंडली में जब कोई ग्रह मजबूत होता है तो वह जातक को शुभ फल देता है और कमजोर होता है तो अशुभ फल देता है। वहीं कुछ ग्रह दूसरे ग्रहों के साथ मिलकर शुभ व अशुभ दोनों फल देते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार राहु और सूर्य एक दूसरे के विपरीत माने जाते हैं। जहां सूर्य नियमों और अनुशासन का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीं राहु प्रतिबंधों को तोड़ने का प्रतिनिधित्व करते हैं। यही कारण है कि यदि किसी जातक की कुंडली के किसी भाव में राहु और सूर्य एक साथ या एक दूसरे के विपरीत स्थिति में हो तो ग्रहण दोष लगता है। ज्योतिष शास्त्र में इस युति को महाकष्टकारी योग माना जाता है।
वहीं इस दोष से ग्रसित जातक के आत्मविश्वास में कमी आने लगती है साथ ही असुरक्षा की भावना भी उत्पन्न होने लगती है, जिसके कारण जातक को जीवन में कई तरह की चुनातियों का सामना करना पड़ता है। भले ही इन दोनों ग्रहों के गुण एक दूसरे के विपरीत हैं, लेकिन ये दोनों ही भगवान शिव के भक्त हैं। इसलिए श्रावण के शुभ माह पर सूर्य देव एवं राहु दोनों की पूजा फलदायी मानी जाती है। इस शुभ समय पर स्वाति नक्षत्र भी लग रहा है जिसका स्वामी राहु हैं, इसलिए सूर्य देव को समर्पित रविवार के दिन एवं स्वाति नक्षत्र में सूर्य देव के साथ राहु की पूजा अत्यधिक प्रभावशाली हो सकती है। श्री मंदिर के माध्यम से इस शुभ संयोग पर होने वाली राहु-सूर्य ग्रहण दोष पूजा में भाग लें और सूर्य देव से भावनात्मक स्थिरता और असुरक्षा पर नियंत्रण पाने का दिव्य आशीष प्राप्त करें।