🔱 साल 2026 के पहले सोमवार को 5 तत्वों की ऊर्जा के साथ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में महारुद्राभिषेक से पाएं आने वाले समय के लिए बेहतर स्वास्थ्य का दिव्य आशीर्वाद 🔱
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प्रथम सोमवार पंच तत्व महारुद्राभिषेक विशेष

पंच तत्व (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि) महा रुद्राभिषेक

नए साल में बेहतर स्वास्थ्य और शिव जी का आशीर्वाद पाएं
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श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, खंडवा, मध्य प्रदेश
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🔱 साल 2026 के पहले सोमवार को 5 तत्वों की ऊर्जा के साथ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में महारुद्राभिषेक से पाएं आने वाले समय के लिए बेहतर स्वास्थ्य का दिव्य आशीर्वाद 🔱

🛕 साल 2026 का पहला सोमवार भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का अत्यंत शुभ अवसर लेकर आ रहा है। इस पावन दिन पंच तत्व महारुद्राभिषेक की विशेष मान्यता है, जिसमें जल, दूध, घी, शहद और दही – पंच तत्वों द्वारा शिवलिंग का अभिषेक होता है। साथ ही पंच तत्व (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि) का आह्वान इसमें शामिल रहता है। यह महानुष्ठान जीवन में सेहत सुधार, शांति और सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए बेहद फलदायी माना गया है। मान्यता है कि पंच तत्वों से किया गया अभिषेक शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करता है और रोग, तनाव और बाधाओं को दूर करने की शक्ति रखता है। नए वर्ष का शुभ आरंभ श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में इस दिव्य साधना से करने पर शिव कृपा से स्थिरता, स्वास्थ्य और सफलता का मार्ग मजबूत होता है।

मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के पावन तट पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक अत्यंत पावन-पुण्य स्थल है। यह पवित्र धाम मंधाता द्वीप पर स्थित है, जो ‘ॐ’ के आकार का माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यहाँ भगवान शिव ओंकार और अमलेश्वर—दो रूपों में विराजमान हैं। मान्यता है कि ओंकारेश्वर में पंच तत्व रुद्राभिषेक से भक्तों के पाप नष्ट होते हैं, मन को शांति मिलती है और जीवन में स्वास्थ्य और संतुलन की दिशा मजबूत होती है। मान्यता है कि यहां सच्चे भाव से किया गया पंच तत्व रुद्राभिषेक, रोग, भय और कष्टों से राहत का मार्ग दिखाता है। विद्वानों के बीच ओंकारेश्वर, शिव भक्ति, तप और मोक्ष का दिव्य केंद्र है।

🕉️ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पंच तत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—का सजीव प्रतीक माना जाता है। नर्मदा नदी का पावन जल यहां निरंतर शुद्धि प्रदान करता है, मंधाता पर्वत की पृथ्वी स्थिरता और आधार का भाव देती है। दीप और अभिषेक में प्रयुक्त अग्नि ऊर्जा व रूपांतरण का प्रतीक है, मंदिर परिसर की प्रवाहित वायु प्राणशक्ति का संचार करती है, और ‘ॐ’ के आकार वाला द्वीप आकाश तत्व से जुड़कर ब्रह्म चेतना का बोध कराता है। इसी कारण ओंकारेश्वर में पंच तत्वों से किया गया महा रुद्र अभिषेक, शरीर, मन और आत्मा—तीनों को संतुलित कर मोक्ष मार्ग की ओर ले जाने वाला माना गया है।

🛕 श्री मंदिर द्वारा साल 2026 के पहले शनिवार को आयोजित होने जा रहे पंच तत्व (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि) महा रुद्राभिषेक में भाग लें और शिव जी की कृपा से नए साल में बेहतर स्वास्थ्य की दिशा पाएं

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, खंडवा, मध्य प्रदेश

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, खंडवा, मध्य प्रदेश
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, इन्हें स्वयंभू लिंग माना जाता है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नाम के द्वीप पर स्थित है। यहां ज्योतिर्लिंग दो स्वरूप में मौजूद है। जिनमें से एक को ममलेश्वर के नाम से और दूसरे को ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ममलेश्वर नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर स्थित है। अलग होते हुए भी इनकी गणना एक ही की जाती है। ओमकार का उच्चारण सर्वप्रथम स्रष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था। वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है। मान्यता है कि मां नर्मदा भी यहां स्वयं ॐ के आकार में बहती हैं। शास्त्रों के अनुसार ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। पुराणों में स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा का उल्लेख है।

पौराणिक कथा के अनुसार भोलेनाथ तीनों लोकों के भ्रमण के बाद यहां रात्रि में शयन के लिए आते हैं। कहते हैं पृथ्वी पर ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव-पार्वती रोज चौसर पांसे खेलते हैं। रात्रि में शयन आरती के बाद यहां प्रतिदिन चौपड़ बिछाए जाते हैं और गर्भग्रह बंद कर दिया जाता है। आश्चर्य की बात है कि जिस मंदिर के भीतर रात के समय परिंदा भी पर नहीं मार पाता है वहां हर दिन चौपड़ बिखरे पाए जाते हैं। यह तथ्य इस मंदिर के धार्मिक महत्व को और बढा देता है यही कारण है कि सभी तीर्थों के दर्शन पश्चात ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन विशेष महत्व है। तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओमकारेश्वर में अर्पित करते हैं, तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं अन्यथा वे अधूरे ही माने जाते हैं।

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