दिवंगत आत्माओं की शांति और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए श्राद्ध त्रयोदशी गंगोत्री यमुनोत्री संयुक्त पितृ दोष, यम दंड मुक्ति महापूजा और गंगोत्री गंगा लहरी पाठ
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श्राद्ध त्रयोदशी गंगोत्री यमुनोत्री संयुक्त

पितृ दोष, यम दंड मुक्ति महापूजा और गंगोत्री गंगा लहरी पाठ

दिवंगत आत्माओं की शांति और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए
temple venue
गंगा घाट, यमुना घाट, श्री गंगोत्री धाम, श्री यमुनोत्री धाम, उत्तराखंड
pooja date
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दिवंगत आत्माओं की शांति और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए श्राद्ध त्रयोदशी गंगोत्री यमुनोत्री संयुक्त पितृ दोष, यम दंड मुक्ति महापूजा और गंगोत्री गंगा लहरी पाठ

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए किए जाने वाले सभी अनुष्ठानों के लिए सबसे शुभ माना गया है। शास्त्रों की मानें तो पितृ पक्ष की अवधि के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली हर तिथि का अपना अलग विशेष महत्व है, जिसमें से एक है त्रयोदशी तिथि, जिसे त्रयोदशी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उन पूर्वजों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन हिंदू कैलेंडर के अनुसार किसी भी त्रयोदशी तिथि को हुआ हो। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, यदि पितरों का ठीक प्रकार से श्राद्ध न किया जाए तो उनके वंशजों को पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है। पितृदोष के कारण जीवन में आर्थिक हानि, पारिवारिक क्लेश आदि कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध त्रयोदशी तिथि पर पितृ दोष शांति महापूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में खुशहाली और आती है। यदि यह पूजा किसी धार्मिक स्थान पर की जाए तो इसका महत्व और बढ़ जाता है। वहीं यह विशेष पूजा गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों के तट पर अनुभवी पंडितों द्वारा किया जाना चाहिए। इसके अलावा पूजा के साथ यम दंड पूजा एवं गंगा लहरी पाठ कराना अत्यंत फलदायी हो सकता है।

शास्त्रों के अनुसार, यमुना देवी सूर्य देव की पुत्री और देव यमराज यानि पितरों के रक्षक की बहन है। पौराणिक कथानुसार, जब यमुना देवी ने एक नदी के रूप में पृथ्वी पर प्रवाह शुरू किया, तब उनके भाई यमराज को मृत्यु लोक का अधिपति बनाया गया। इस अवसर पर यमुना देवी ने अपने भाई यमराज के साथ भाई दूज का पर्व मनाया। यमराज, अपनी बहन की भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर, उनसे वरदान मांगने का आग्रह किया। यमुना देवी की प्रार्थना सुनकर यमराज ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति यमुना के पवित्र जल में स्नान करेगा या उनके तट पर श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा करेगा, उसे यमलोक का मार्ग नहीं देखना पड़ेगा। इसलिए, पितृ पक्ष के अवसर पर श्री यमुनोत्री धाम में पितृ दोष, यम दंड मुक्ति महापूजा और श्री गंगोत्री धाम में गंगा लहरी पाठ का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर द्वारा एक साथ इन पवित्र स्थलों पर होने वाली इस पूजा में भाग लें और अपने पूर्वजों का आशीष पाएं। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं।

गंगा घाट, यमुना घाट, श्री गंगोत्री धाम, श्री यमुनोत्री धाम, उत्तराखंड

गंगा घाट, यमुना घाट, श्री गंगोत्री धाम, श्री यमुनोत्री धाम, उत्तराखंड
यमुनोत्री धाम, पवित्र छोटे चार धाम यात्राओं में से एक है, जिसकी शुरुआत यहां से होती है। यहाँ तीर्थयात्री अपनी यात्रा को सुरक्षित और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए देवी यमुना का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। देवी यमुना को समर्पित यह मंदिर उत्तरकाशी जिले में, यमुना नदी के किनारे स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि असित मुनि इस क्षेत्र में निवास करते थे और प्रतिदिन गंगा और यमुना दोनों नदियों में स्नान करते थे। अपनी वृद्धावस्था में, जब वह गंगोत्री तक यात्रा नहीं कर सके, तब उनके लिए यमुनोत्री के निकट गंगा की एक धारा चमत्कारिक रूप से प्रकट हुई, जिससे वे अपने नियमित स्नान को जारी रख सके। इसके अलावा, देवी यमुना को सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यमराज की बहन माना जाता है। मान्यता है कि जो भक्त यमुना देवी की पूजा करते हैं, उन्हें सूर्य देव और यमराज दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

वहीं, देवभूमि उत्तराखंड के पवित्र भूमि पर स्थित है गंगोत्री धाम। गंगोत्री, गंगा नदी का उद्गम स्थल है, माना जाता है कि इस स्थान पर मां गंगा की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष प्राप्ति के लिए यहां तपस्या की थी और उनके अथक प्रयासों के बाद मां गंगा धरती पर आईं, लेकिन मां गंगा का वेग इतना तेज था कि अगर वह सीधे धरती पर गिरतीं तो धरती नष्ट हो जाती। प्रलय की स्थिति बन जाती और वह पाताल लोक चली जातीं। भक्तों की प्रार्थना पर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समेट लिया और उसके बाद मां गंगा कैलाश होते हुए धरती पर पहुंचीं और भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया। ऐसा माना जाता है कि राजा भगीरथ ने जिस पत्थर पर ध्यान लगाया था, वह आज भी यहाँ मौजूद है और इसे भगीरथ शिला के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि जो भी एकादशी के शुभ दिन गंगोत्री धाम में गंगा घाट पर पूजा करता है, उसे माँ गंगा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

மதிப்புரைகள் மற்றும் மதிப்பீடுகள்

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