कालाष्टमी, जिसे काला अष्टमी भी कहा जाता है। ये विशेष दिन भगवान शिव के उग्र रूप, भैरव को समर्पित होता है। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ देवी काली की पूजा-अर्चना का भी विधान है, क्योंकि माँ काली भी शक्ति का उग्र रूप हैं, जो नकारात्मकता का नाश करने के लिए प्रकट हुई थीं। इसलिए माँ काली को प्रसन्न करने के लिए मां काली मूल मंत्र जाप एवं काली कर्पूर अष्टकम का पाठ करना अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। इसके पाठ से मनुष्य के जीवन से शत्रुओं का नाश हो सकता है। कहते हैं काली कर्पूर अष्टकम में इतनी शक्ति है कि इसका पाठ करने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से अत्यंत बलवान हो सकता है जिससे वो निर्भयता पूर्वक समस्याओं का सामना करता है और जीवन में हर प्रकार के भौतिक सुखों का आनंद प्राप्त कर सकता है। देवी महाकाली अपने भक्तों के जीवन में प्रकाश और आशा की किरण लाती हैं साथ ही नकारात्मकता और अंधकार को दूर करती हैं। देवी काली के उग्र रूप की उत्पति राक्षसों के विनाश करने के लिए हुई थी। यह एक मात्र ऐसी शक्ति हैं जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है।
यही कारण है कि कालाष्टमी की शुभ तिथि पर कोलकत्ता के शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में पूजा का आयोजन किया जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर दुखी होकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तब उनके दाहिने पैर का अंगूठा इसी स्थान पर गिरा था। इसी कारण से यह स्थान पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। शास्त्रों के अनुसार, देवी काली माता पार्वती का उग्र रूप है, इसलिए शिव जी को इनका पति माना गया है। मान्यता है कि कालाष्टमी के शुभ दिन पर किसी भी अनुष्ठान को करने से कई गुना अत्यधिक फल की प्राप्ति होती है। इसलिए, कालाष्टमी की इस शुभ तिथि पर कराई जाने वाली 11,000 माँ काली मूल मंत्र जाप और काली कर्पूर अष्टकम का फल अत्यधिक प्रभावशाली माना गया है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और शिव जी के साथ देवी काली का आशीष पाएं।