हिंदु पंचांग के अनुसार, हर साल अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ललिता पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक मान्यतानुसार, इस दिन देवी ललिता ने 'भांडा' नामक राक्षस को मारने के लिए प्रकट हुई थीं, जो कि कामदेव के शरीर की राख से उत्पन्न हुआ था। यही कारण है कि नवरात्रि के पांचवे दिन पड़ने वाली यह तिथि मां ललिता की पूजा के लिए सबसे शुभ तिथियों में से एक मानी जाती है। इस दिन भक्त देवी ललिता की कृपा प्राप्त करने के लिए षोडशोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते हैं और ललिता सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करते हैं। दस महाविद्याओं में से के मां ललिता को मां त्रिपुर सुंदरी, राजराजेश्वरी, कामाक्षी नाम से भी जाना जाता है। मां ललिता का स्वरूप सौम्य है और उन्हें तीनों लोकों में सबसे सुंदर माना जाता है। देवी ललिता के सोलह वर्ष की आयु वाले स्वरूप को षोडशी कहा जाता है। मान्यता है कि अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विधि विधान के साथ श्री ललिता सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ एवं त्रिपुर सुंदरी हवन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
शास्त्रों के अनुसार, सबसे पहले ललिता सहस्त्रनाम स्त्रोत पाठ माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने अपने पिता भगवान शिव के मुख से सुना था। कई ऋषियों ने इस स्तोत्र का जाप करके देवी को प्रसन्न किया और सिद्धियाँ प्राप्त की हैं। इसलिए यह माना जाता है कि कलियुग में जो कोई भी देवी के हजार नामों से पूजा करेगा, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी। प्रयागराज में माँ ललिता देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता सती की उंगली गिरी थी। माना जाता है कि जो भी भक्त ललिता पंचमी तिथि के शुभ अवसर पर इस शक्तिपीठ में माँ ललिता को समर्पित यह पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं देवी की कृपा से पूरी होती हैं। यदि आप भी अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए माँ ललिता का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो श्री मंदिर के माध्यम से ललिता पंचमी शक्तिपीठ विशेष ललिता सहस्रनाम पाठ एवं त्रिपुर सुंदरी हवन में भाग लें।