हिंदु पंचाग के अनुसार, हर साल भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को काली जयंती मनाई जाती है। इस शुभ दिन पर मां काली की पूजा अत्यंत फलदायी मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि महाकाल की प्रियतमा देवी काली ही अपने दक्षिण और वाम रूप में प्रकट हुई और दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुई। हिन्दू पुराणों देवी दक्षिणा काली को एक रूद्र अवतार माना गया है। उनके स्वरुप की बात करें तो उनका रूप भी विकराल माना जाता है। देवी काली के दक्षिणा काली नाम पड़ने के विभिन्न कारण है, जिनमें सर्वप्रथम यह है कि दक्षिणा मूर्ति भैरव ने इनकी उपासना की, इसलिए यह देवी दक्षिणा काली के नाम से जाने जाने लगी। यही कारण है कि काली जयंती पर देवी दक्षिणा काली की उपासना करने का महत्व अधिक है।
वहीं दूसरी कथा के अनुसार, दक्षिण दिशा की ओर रहने वाले यमराज, देवी का नाम सुनते ही भाग जाते है, इसलिए देवी दक्षिणा काली के नाम से जानी जाती हैं। तात्पर्य यह है कि, मृत्यु के देवता यम, जिनका राज्य यानि यमलोक दक्षिण दिशा में विद्यमान है वो भी देवी काली के भक्तों से दूर रहते हैं और मृत्यु पश्चात् यम दूत उन्हें यम लोक नहीं ले जाते हैं। इसलिए मान्यता है कि देवी काली के इस स्वरूप की विशेष पूजा से उन्हें प्रसन्न करके मनोकामनाओं की पूर्ति एवं बाधाओं के निवारण का वरदान प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए काली जयंती के के शुभ अवसर पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में श्री श्री दक्षिणा काली माता महानिशा पूजन, स्तोत्र पाठ एवं हवन आयोजन किया जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। श्री मंदिर द्वारा इस विशेष पूजा में भाग लें और भगवती दक्षिणा काली से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति एवं बाधाओं के निवारण का आशीष प्राप्त करें।