कालाष्टमी हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है क्यूंकि इस दिन बाबा भैरव की उत्पत्ति हुई थी। पुराणों के अनुसार, बाबा काल भैरव भगवान शिव का एक उग्र रूप हैं जो समय के चक्र को नियंत्रित करते हैं। मान्यता है कि इस शुभ तिथि पर बाबा काल भैरव की पूजा करने वाले भक्त नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रहते हैं। वहीं, काशी में काल भैरव का विशेष स्थान है। पौराणिक कथानुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को सर्वोच्च मानते हुए अहंकार का प्रदर्शन किया। उनके अभिमान को दूर करने के लिए, भगवान शिव काल भैरव का धारण कर उनके एक सिर को काट दिया, जो अहंकार के विनाश का प्रतीक है। इस कृत्य के कारण काल भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप लगा और भगवान विष्णु की सलाह पर वे ब्रह्मा के सिर को हाथ में लेकर उस पाप से मुक्ति पाने के लिए भ्रमण करने लगे। उनके इस यात्रा को कपाल भिक्षा कहा गया, जो गहन पश्चाताप और विनम्रता का प्रतीक है, क्योंकि वे खाली कपाल के साथ घूमते रहे। अंततः काशी में उनके हाथ से वह कपाल गिर गया और वहीं उन्हें पाप से मुक्ति मिली। तब भगवान शिव ने घोषणा की कि काल भैरव ने समय के चक्र पर विजय प्राप्त की है, और उनका नाम 'काल भैरव' होगा, जो काशी के कोतवाल के रूप में नगर की रक्षा करेंगे। इस प्रकार, काल भैरव को जीवन के पापों से और सभी पूर्व जन्मों के कष्टों से मुक्ति देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है।
चार प्रहर काल भैरव अभिषेक पूजा में श्रृंगार सेवा, खप्पर सेवा और भोग सेवा शामिल है, जिससे बाबा काल भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत शुभ माना गया है। चार प्रहर में की जाने वाली यह पूजा काल भैरव के समय-चक्र के प्रतीक को दर्शाती है, जबकि श्रृंगार सेवा में काल भैरव को आभूषणों से अलंकृत करना उनकी सर्वोच्च सत्ता का सम्मान करता है। खप्पर सेवा, जिसमें कपाल का प्रतीक शामिल है, काल भैरव की विनम्रता और तपस्या का पूजन है। अंत में, भोग सेवा में पवित्र भोजन का अर्पण किया जाता है, जो भक्तों की श्रद्धा और मनोकामना पूर्ति का प्रतीक है। यह पूजा काशी में विराजित श्री काल भैरव और आदि काल भैरव मंदिर में संपन्न की जाएगी। यह अनुष्ठान सात पिछले जन्मों के पापों और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए किए जाते हैं। इस पूजा में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लेकर काल भैरव के आशीर्वाद प्राप्त करें।