दुर्गा अष्टमी का दिन माँ दुर्गा की उपासना के लिए समर्पित एक पवित्र पर्व है। यह दिन शक्ति, सुरक्षा और पोषण ऊर्जा की देवी माँ दुर्गा की आराधना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। हर महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी मनाई जाती है। इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा की दस शक्तिशाली महाविद्याओं की भी आराधना की जाती है, क्योंकि ये महाविद्याएँ देवी की दैवीय स्त्री ऊर्जा के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाती हैं। इनमें से पहली महाविद्या माँ काली एवं दूसरी महाविद्या मां तारा विशेष महत्व रखती हैं। माँ काली को आत्मबोध और आंतरिक सशक्तिकरण की रहस्यमयी शक्ति के रूप में पूजा जाता है। वह भक्तों को उनके भीतर छिपे भय और अंधकार का सामना करने में मदद करती हैं, जिससे वे अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान सकें। उनकी परिवर्तनकारी ऊर्जा मानसिक और आध्यात्मिक स्थिरता को प्रोत्साहित करती है। इसके साथ ही मां काली दबी हुई भावनाओं, आघात और भय से मुक्त कर आत्म-साक्षात्कार और स्वीकृति का मार्ग दिखाती है।
वहीं, माँ तारा, जिन्हें 'परम उद्धारक' के रूप में जाना जाता है, इस बदलाव को मार्गदर्शन देकर पूरा करती हैं। माँ तारा अपने भक्तों को करियर, रिश्तों और स्वास्थ्य से जुड़ी बाधाओं को दूर करने में मदद करती हैं। साथ ही, वह मानसिक अशांति को समाप्त कर स्पष्टता और सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती हैं। माँ काली की प्रतिकूलताओं का सामना करने की शक्ति और माँ तारा के मार्गदर्शन को मिलाकर भक्त एक आध्यात्मिक साधन प्राप्त करते हैं, जिससे वे जीवन की कठिनाइयों को पार कर संतुलन और प्रगति की ओर बढ़ते हैं। इन दिव्य आशीर्वादों को प्राप्त करने के लिए मासिक दुर्गा अष्टमी पर शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर और शक्तिपीठ माँ तारापीठ मंदिर में माँ काली सिद्धि मंत्र का 1,08,000 जाप और माँ तारा सिद्धि मंत्र का 1,08,000 जाप एवं यज्ञ का आयोजन किया जाएगा। यह पवित्र अनुष्ठान मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए संपूर्ण उपचार प्रदान करता है। चाहे आघात से उबरने की शक्ति चाहिए हो या भ्रम से बाहर निकलने की स्पष्टता, यह यज्ञ भक्तों को अपने सच्चे स्वरूप को अपनाने, दैवीय समाधान प्राप्त करने और जीवन में परिवर्तन लाने का सामर्थ्य प्रदान करता है। अतः, इस शक्तिशाली पूजा में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लें और माँ काली व माँ तारा से स्पष्टता, साहस और आध्यात्मिक विकास का आशीर्वाद प्राप्त करें।