अमावस्या की पावन रात, महाविद्याओं की साधना से पाएं दिव्य कृपा और अपार समृद्धि!🔱✨🙏
वैदिक पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन नकारात्मक ऊर्जा अपने चरम पर होती है, जिसके कारण देवी-देवताओं के उग्र रूपों की विशेष पूजा की जाती है। पुराणों में दिए गए विवरण के अनुसार दस महाविद्याएँ देवी दुर्गा के उग्र स्वरूप मानी जाती हैं और अमावस्या के दिन इनकी आराधना करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। वैदिक परंपरा में दस महाविद्याओं की साधना का विशेष महत्व बताया गया है, जिनमें से पाँच महाविद्याएँ अत्यधिक पूजनीय मानी जाती हैं। यह 5 महाविद्याएँ अग्रलिखित है।
🔹 माँ काली, दस महाविद्याओं में पहली हैं। वे काल, सृष्टि और संहार की प्रतीक हैं तथा शिव की शक्ति मानी जाती हैं। वे बाधाओं को दूर करती हैं, नकारात्मकता का नाश करती हैं और नए आरंभ का मार्ग खोलती हैं।
🔹 माँ तारा तांत्रिकों की प्रमुख देवी मानी जाती हैं। जिनके महर्षि वशिष्ठ सबसे पहले उपासक माने जाते हैं। माँ तारा मार्गदर्शन और करुणा की प्रतीक हैं। वे कठिन समय में सहारा देती हैं और ज्ञान व आध्यात्मिक मुक्ति प्रदान करती हैं।
🔹 माँ षोडशी, जिन्हें लालिता, राजराजेश्वरी और त्रिपुरा सुंदरी भी कहा जाता है, सोलह सिद्धियों की स्वामिनी मानी जाती हैं। वे सौंदर्य, समरसता और परम सत्य की प्रतीक हैं। माँ षोडशी जीवन में संतुलन और पूर्णता लाने के लिए पूजित हैं।
🔹 माँ भुवनेश्वरी को पूरे ब्रह्मांड की अधिपति देवी माना जाता है। वे सृष्टि की रचना और समृद्धि की शक्ति हैं। ऐसा माना जाता है कि वे अपने भक्तों को धन, सुख और तरक्की के अवसर देती हैं।
🔹 माँ बगलामुखी नियंत्रण, विजय और स्थिरता की प्रतीक हैं। वे अपने शत्रुओं को पराजित करने और रक्षा देने की शक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। माँ बगलामुखी अपने भक्तों को बाधाएँ दूर करने, विजय प्राप्त करने और संघर्ष में सफलता का आशीर्वाद देती हैं।
इसीलिए, इस अमावस्या पर कोलकाता के शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में उपरोक्त महाविद्याओं को समर्पित महानुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस महायज्ञ में भाग लें और महाविद्याओं की दिव्य कृपा प्राप्त करें।