वैदिक ज्योतिष में राहु को नौ ग्रहों में से एक माना गया है, जिसे छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राहु राक्षस स्वरभानु का हिस्सा है, जिसे भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से विभाजित कर दिया था। वहीं, गुरु बृहस्पति (बृहस्पति ग्रह) को "देवताओं के गुरु" के रूप में पूजनीय माना जाता है और यह ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक है। ज्योतिष के अनुसार, यदि किसी की कुंडली में राहु और गुरु का संयोजन होता है, तो यह चांडाल दोष का निर्माण करता है। यह दोष जीवन में कई चुनौतियां ला सकता है, जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, करियर में रुकावटें, वैवाहिक जीवन में तनाव, और निर्णय लेने में कठिनाई। इसे मानसिक उलझन और दोहरे मनोवृत्ति का कारण भी माना जाता है, जिससे व्यक्ति स्पष्ट और सही निर्णय लेने में असमर्थ हो सकता है। यह दोष कुंडली में मौजूद अन्य शुभ योगों को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे जीवन में परेशानियां बढ़ जाती हैं। हालांकि, ऐसा भी माना जाता है कि राहु और गुरु का सकारात्मक प्रभाव व्यक्ति को अपार सफलता और समृद्धि प्रदान कर सकता है। इन दोनों ग्रहों के संतुलन के लिए राहु-गुरु चांडाल दोष निवारण पूजा का महत्व है। यह पूजा इस दोष के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए की जाती है। इसे विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है, जो समृद्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति चाहते हैं।
यह विशेष पूजा उत्तराखंड के पवित्र बृहस्पति धाम में आयोजित की जाएगी। माना जाता है कि देवगुरु बृहस्पति ने इसी स्थान पर यहां कठोर तपस्या की थी, जिससे इस पर्वत को उनका नाम मिला। यह मंदिर देवगुरु बृहस्पति को समर्पित दुनिया का एकमात्र मंदिर माना जाता है और यह अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है। भक्तों का मानना है कि यहां की गई प्रार्थनाएं अवश्य फलदायी होती हैं और देवगुरु बृहस्पति उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस पूजा को स्वाति नक्षत्र के दौरान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि इस नक्षत्र का स्वामी राहु है। इसी तरह, गुरुवार देवगुरु बृहस्पति को समर्पित है। इसलिए, स्वाति नक्षत्र और गुरुवार के शुभ संयोग पर यह पूजा करने से चांडाल दोष के अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है। यदि आप भी राहु-गुरु चांडाल दोष के निवारण और अपने जीवन में समृद्धि एवं भौतिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं, तो श्री मंदिर के माध्यम से उत्तराखंड के बृहस्पति धाम में आयोजित इस पूजा में भाग लें और देवगुरु बृहस्पति का आशीर्वाद प्राप्त करें।