सनातन धर्म में काल भैरव जयंती का विशेष महत्व है। यह तिथि भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव को समर्पित है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, इस दिन काल भैरव का अवतरण हुआ था। काल भैरव काल के देवता हैं। भैरव का अर्थ है ‘भय को हरने वाला’। मान्यता है कि काल भैरव जयंती के दिन काल भैरव की उपासना करने से निर्भयता एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान शिव देवी के 51 शक्तिपीठों की स्थापना कर रहे थे, तब असुरों को उनके अस्तित्व का भय सताने लगा और उन्होंने इन शक्तिपीठों को नष्ट करने का प्रयास किया। यह जानकर भगवान शिव ने इन शक्तिपीठों की रक्षा का दायित्व अपने भैरव अवतार को सौंपा। तब से मान्यता है कि सभी पवित्र अलग-अलग शक्तिपीठों की रक्षा काल भैरव के अलग-अलग स्वरूप करते हैं। श्री काली प्रथम महाविद्या हैं और काल भैरव दस भैरवों में प्रथम हैं और काली महाविद्या के पति हैं।
इसीलिए माना जाता है कि देवी काली की पूजा के पहले बाबा भैरव की पूजा की जाती है। मान्यता है कि काल भैरव जंयती पर काल भैरव और मां काली सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट कर भक्तों को निर्भयता का आशीष देते हैं। इसलिए श्री मंदिर द्वारा काल भैरव जयंती के शुभ अवसर पर पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में और उज्जैन के श्री विक्रांत भैरव में इस संयुक्त पूजा का आयोजन किया जाएगा। शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर 51 पवित्र शक्तीपीठ है। यह मंदिर मां काली की पूजा के लिए सबसे शुभ शक्तिपीठ माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। वहीं विक्रांत भैरव मंदिर काल भैरव को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर है। श्री मंदिर के माध्यम से जीवन में निर्भयता प्राप्ति एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए इस संयुक्त पूजा में भाग लें और काल भैरव संग देवी काली का दिव्य आशीष प्राप्त करें।