शतभिषा नक्षत्र की पावन अवधि में, इस विशेष पूजा से राहु-केतु के नकारात्मक प्रभावों को कम करें 🌌🙏
क्या आप भ्रम, चिंता या अनिर्णय की स्थिति से जूझ रहे हैं? क्या आपको अपने मजबूत इरादों और सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद भी सही परिणाम नहीं मिल रहे हैं? ये दुष्परिणाम केवल एक संयोग नहीं हो सकते। वैदिक ज्योतिष में, ऐसे पैटर्न अक्सर राहु और केतु के छिपे हुए प्रभाव से जुड़े होते हैं—छाया ग्रह, जो चुपचाप हमारे विचारों, भावनाओं और प्रगति को प्रभावित करते हैं।
🙏 जब राहु या केतु किसी जातक की कुंडली में नकारात्मक रूप में स्थित होते हैं, तो उनके प्रभाव अक्सर इस प्रकार प्रकट होते हैं:
🔹 भ्रम एवं अत्यधिक सोच
🔹 भावनात्मक अस्थिरता या चिंता
🔹 प्रयासों के बावजूद बार-बार असफलताएँ
🔹 गलत या आवेगपूर्ण निर्णय
🔹 कार्यों में अड़चन या दिशाहीनता का अनुभव
अक्सर ये प्रभाव सतह पर दिखाई नहीं देते, फिर भी ये जीवन की गुणवत्ता को गहराई से प्रभावित करते हैं। शास्त्रों में भगवान शिव को एकमात्र ऐसे देवता माना गया है जो राहु और केतु की अस्थिर ऊर्जाओं को संतुलित करने में सक्षम हैं। रुद्राभिषेक मन को शांत करता है और आंतरिक जागरूकता को बढ़ाता है, जबकि राहु-केतु शांति पूजा कर्म असंतुलन और ग्रह पीड़ा को कम करती है। इस बार, एक दुर्लभ और शक्तिशाली संयोग इन ऊर्जाओं को संतुलित करने का उत्तम अवसर प्रदान करता है। राहु द्वारा शासित शतभिषा नक्षत्र सक्रिय है। यह दिव्य समय राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक के लिए आदर्श माना जाता है। यह पूजा मानसिक बेचैनी को कम करने, कर्म प्रभावों को संतुलित करने, और राहु-केतु के कारण होने वाले अचानक व्यवधानों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक प्रभावी आध्यात्मिक उपाय मानी जाती है। साथ ही यह भावनात्मक स्थिरता, स्पष्ट निर्णय क्षमता और आंतरिक स्पष्टता को भी बढ़ावा देती है।
इसलिए, शतभिषा नक्षत्र (राहु शासित) की अवधि में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक का आयोजन हरिद्वार के श्री पशुपतिनाथ महादेव मंदिर में किया जाएगा, जो भगवान शिव की आठ मुखों वाली मूर्ति के लिए प्रसिद्ध एक पवित्र स्थल है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और इस दुर्लभ ब्रह्मांडीय संरेखण को अपने जीवन में स्पष्टता, शांति और सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम बनाएं।