सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना गया है। उनका अवतरण संसार में बढ़ते अधर्म और अन्याय का अंत करने के लिए हुआ था। श्रीकृष्ण ने बुद्धि और बल का सम्मिलित प्रयोग करते हुए बुरी शक्तियों का नाश किया और धर्म की स्थापना की। एक प्राचीन कथा के अनुसार, कंस, जो मथुरा का अत्याचारी राजा और श्रीकृष्ण की माता देवकी का भाई था, को यह भविष्यवाणी मिली कि देवकी का आठवां पुत्र उसका संहार करेगा। इस आशंका में कंस ने देवकी और उनके पति वसुदेव को बंदी बना लिया और उनके सात बच्चों की हत्या कर दी। लेकिन आठवें पुत्र, श्रीकृष्ण, को वसुदेव ने चुपके से गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के पास सुरक्षित पहुँचा दिया। गोकुल में बाल्यकाल व्यतीत करने के बाद, श्रीकृष्ण मथुरा लौटे और एक कुश्ती प्रतियोगिता में कंस का वध कर उसके अत्याचारों से मथुरा को मुक्त कराया। इस तरह उन्होंने अपने साहस और नीति से धर्म की रक्षा की, जिसके कारण उन्हें परम योद्धा, नीतिज्ञ और भक्तों के रक्षक के रूप में पूजा जाता है।
इसके अलावा, महाभारत के युद्ध में उन्होंने बिना शस्त्र उठाए पांडवों का मार्गदर्शन किया और धर्म की विजय सुनिश्चित की। युद्धभूमि में अर्जुन को श्रीकृष्ण ने भगवद गीता का उपदेश दिया, जिससे जीवन के गहरे रहस्यों और धर्म के सिद्धांतों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। शास्त्रों में भगवान कृष्ण की पूजा के कई विधान हैं बताए गए हैं, जिनमें से एक है कृष्ण द्वादश नाम स्तोत्र पाठ। इस पाठ में भगवान कृष्ण के द्वादश नाम अर्थात् उनके बारह नाम जैसे 'कृष्ण', 'गोविंद', 'माधव', 'केशव' शामिल हैं। मान्यता है कि इन नामों का जाप करने से व्यक्ति को शत्रु बाधाओं से मुक्ति मिलती है और बुद्धि में उन्नति होती है। वहीं शत्रु विनाशक हवन में, अग्नि में विभिन्न हवन सामग्री अर्पित करते हुए भगवान कृष्ण का आवाह्न किया जाता है। इस हवन का उद्देश्य न केवल बाहरी शत्रुओं को परास्त करना है, बल्कि आंतरिक नकारात्मकताओं, जैसे कि क्रोध, अहंकार, और मोह को भी दूर करना होता है। इसलिए मथुरा के श्री दीर्घ विष्णु मंदिर में कृष्ण द्वादश नाम स्तोत्र पाठ और शत्रु विनाशक हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान कृष्ण द्वारा शत्रुओं पर विजय प्राप्ति एवं उन्नत बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें।