नकारात्मकता से पूर्ण सुरक्षा और शत्रुओं पर विजय के लिए अमावस्या संपूर्ण रक्षा शक्तिपीठ महानुष्ठान श्री हनुमान, भैरव, महाकाली संपूर्ण सुरक्षा महायज्ञ
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अमावस्या संपूर्ण रक्षा शक्तिपीठ महानुष्ठान

श्री हनुमान, भैरव, महाकाली संपूर्ण सुरक्षा महायज्ञ

नकारात्मकता से पूर्ण सुरक्षा और शत्रुओं पर विजय के लिए
temple venue
शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर, कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल
pooja date
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srimandir devotees
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नकारात्मकता से पूर्ण सुरक्षा और शत्रुओं पर विजय के लिए अमावस्या संपूर्ण रक्षा शक्तिपीठ महानुष्ठान श्री हनुमान, भैरव, महाकाली संपूर्ण सुरक्षा महायज्ञ

सनातन धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार इस दिन नकारात्मक ऊर्जा अपने चरम पर होती है, जिन्हें दूर भगाने के लिए भक्त विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। इनमें भगवान हनुमान, भैरव एवं मां काली को नकारात्मक शक्तियों और बुराई से बचाने के लिए उनकी शक्तिशाली पूजा की जाती है। संकटमोचन के रूप में जाने जाने वाले हनुमान जी की अपार भक्ति और शक्ति ने भगवान राम को सीता को बचाने के दौरान रावण को हराने में मदद की थी। रामायण में बताया गया है कि कैसे हनुमान ने सीता को राम के वचन का आश्वासन देने के लिए समुद्र पार छलांग लगाई थी। अपनी बहादुरी, बुद्धिमत्ता और दैवीय शक्तियों व दुश्मनों को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भगवान हनुमान को भगवान शिव का अंश माना जाता है और उनकी पूजा करने से लोगों को दिव्य सुरक्षा मिलती है।

जिस तरह भगवान हनुमान अपने भक्तों को सभी समस्याओं से बचाते हैं और दुश्मनों पर विजय दिलाते हैं, ठीक उसी तरह भगवान भैरव शिव जी के रुद्रांश, भय को दूर करने और भक्तों को नुकसान से बचाने के लिए पूजनीय हैं। भगवान भैरव की उत्पत्ति के पीछे एक प्राचीन कथा है। एक बार देवताओं ने पूछा कि ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश में सर्वोच्च कौन हैं, तो ब्रह्मा ने खुद को सबसे महान बताया और भगवान शिव का अपमान भी किया। इससे क्रोधित होकर शिव ने काल भैरव का भयंकर रूप धारण किया और अपने नाखून से ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। इस कृत्य को ब्रह्महत्या माना गया। पाप का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव ने काल भैरव को पृथ्वी पर जाने का निर्देश दिया। वे काशी पहुंचे, जहां उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। तब से भगवान शिव ने भैरव को काशी का कोतवाल घोषित किया, ताकि वे शहर और उसके लोगों को बुरी शक्तियों से बचा सकें।

माँ काली भी एक रक्षक हैं जो नकारात्मकता और बुरी शक्तियों को दूर करती हैं। शास्त्रों के अनुसार, देवताओं ने राक्षस रक्तबीज को हराने के लिए संघर्ष किया, जो अपने खून की हर बूंद से नए राक्षस पैदा कर सकता था। माँ काली युद्ध के मैदान में प्रकट हुईं, उन्होंने अपनी जीभ फैलाकर यह सुनिश्चित किया कि खून जमीन पर न गिरे, जिससे राक्षस फिर से पैदा न हो। ये सभी देव मिलकर नकारात्मक ऊर्जाओं व बाधाओं को दूर करते हैं, जिससे भक्तों को संपूर्ण रक्षा मिलती है। इसलिए इस अमावस्या पर कोलकत्ता के शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में श्री हनुमान, भैरव और महाकाली संपूर्ण सुरक्षा महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा।

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर, कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर, कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल
कालीघाट मंदिर, जो कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है, हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है और अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जो शक्ति, ऊर्जा और विनाश की देवी मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां इस मंदिर में देवी काली की प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे नजर आ रही हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला है, उनके हाथ में कुछ कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में कुछ नरमुंड भी बंधे हुए हैं। उनकी जीभ बाहर निकली हुई है और जीभ से कुछ रक्त की बूंदे टपक रह हैं। गौरतलब है कि प्रतिमा में मां काली की जीभ स्वर्ण से बनी हुई है।

वर्तमान में मौजूद मंदिर का निर्माण सबॉर्नो रॉय चौधरी परिवार और बाबू कालीप्रसाद दत्तो के संरक्षण में किया गया था, जिसका निर्माण सन् 1798 में शुरू हुआ और 1809 में पूर्ण हुआ। कालीघाट मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत बड़ा है। यह मंदिर कई सैकड़ों वर्षों से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा है, जो यहां आकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कालीघाट में देवी काली की पूजा से भक्तों को डर, बुराई, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह मंदिर बंगाल के सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है और यहां के धार्मिक त्योहार, विशेषकर दुर्गा पूजा और काली पूजा, बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।

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