ज्योतिष शास्त्र में शनि और केतु की युति को एक महत्वपूर्ण एवं संघर्षपूर्ण घटना मानी गई है। जब शनि और केतु एक ही राशि में होते हैं, तो इसे शनि-केतु युति कहा जाता है। यह युति व्यक्ति के जीवन में गहरा असर डालती है, जिससे जीवन की दिशा और दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण परिवर्तन आने लगते हैं। शनि ग्रह आयु, न्याय, नौकरी, सेवा, अपमान और निष्ठा के कारक हैं, जबकि केतु को रहस्यमय, वैराग्य एवं त्याग का कारक माना गया है। जब ये दोनों ग्रह मिलते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में संघर्ष, अस्थिरता और मानसिक तनाव का कारण बनते हैं। विशेष रूप से यह युति कुंडली के कुछ महत्वपूर्ण घरों में हो, तो इसका प्रभाव और भी गहरा और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
शनि व्यक्ति को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर देता है, जबकि केतु रिश्तों का त्याग कर वैराग्य की भावना उत्पन्न करता है। इस युति के कारण व्यक्ति में मानसिक स्पष्टता और निर्णय लेने की क्षमता में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार, मूला नक्षत्र का स्वामी केतु होता है और शनिवार का दिन शनि ग्रह को समर्पित है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस विशेष संयोग के समय शनि एवं केतु की पूजा करते हैं, वे इस युति के अशुभ प्रभावों से मुक्ति पा सकते हैं।