चैत्र माह में कृष्ण पक्ष के दौरान मनाई जाने वाली पापमोचनी एकादशी आध्यात्मिक शुद्धि और पिछले पापों से मुक्ति के लिए समर्पित एक पवित्र अवसर मानी जाती है। वर्ष की पहली एकादशी के रूप में, यह नकारात्मक कर्मों को समाप्त करने, बाधाओं को दूर करने और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ तिथि मानी जाती है। वहीं हिंदू धर्म में, एकादशी विशेष रूप से भगवान विष्णु की उपासना के लिए समर्पित है। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था, एक बार भद्रावती नगरी में सुकेतु नामक एक धर्मपरायण राजा अपनी पत्नी शैव्या के साथ रहते थे। समृद्ध राज्य और ऐश्वर्य होने के बावजूद, वे निःसंतान होने के कारण अत्यंत दुखी थे। उनकी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि उनके वंश को कौन आगे बढ़ाएगा और उनके जाने के बाद श्राद्ध अनुष्ठान कौन करेगा। इस चिंता से व्याकुल होकर, उन्होंने अपने शाही वैभव को त्याग दिया और वन में जाकर तपस्या करने लगे। भगवान विष्णु की कृपा से उनकी भक्ति सफल हुई और उन्हें संतान प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह कथा भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने में भगवान विष्णु की कृपा की शक्ति को दर्शाती है। मान्यता है कि श्रद्धा और विधिपूर्वक एकादशी का व्रत करने से संतान सुख, परिवार में खुशहाली और बच्चों के उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान कृष्ण अपने बाल रूप में लड्डू गोपाल या संतान गोपाल के रूप में पूजनीय हैं, जो संतान सुख और पारिवारिक समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। वहीं शास्त्रों में पापमोचनी एकादशी पर विशेष रूप से लड्डू गोपाल को समर्पित पूजा, अभिषेक और हवन का विशेष महत्व बताया गया है। इसी कारण भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में 11,000 संतान गोपाल मंत्र जाप, श्री लड्डू गोपाल पंचामृत अभिषेक एवं संतान सुख प्राप्ति हवन का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और अपने बच्चों और परिवार की भलाई के लिए भगवान कृष्ण से विशेष आशीर्वाद प्राप्त करें।