दस महाविद्याओं को देवी दुर्गा का स्वरूप एवं सभी सिद्धियों की दाता माना जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त इन दस महाविद्याओं की पूजा करते हैं, वे सभी सांसारिक सुखों को प्राप्त करते हैं। दर्श अमावस्या का दिन तांत्रिक साधनाओं में बहुत महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दस महाविद्या की पूजा करने से भक्तों को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है। दस महाविद्या पूजा के साथ-साथ इस दिन रात्रि तंत्र युक्त सूक्त और हवन करना बहुत शुभ माना जाता है। दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय में पाया जाने वाला रात्रि तंत्र युक्त सूक्त भगवान ब्रह्मा द्वारा रचित एक स्तोत्र है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। जब दस महाविद्याओं की पूजा के साथ इस सूक्त का पाठ किया जाता है, तो इससे बहुत लाभ होता है। यह व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करने में मदद करता है और लाभकारी परिणाम देता है।
दस महाविद्याओं में से प्रथम महाविद्या मां काली मुख्य रूप से रुद्रप्रयाग में स्थित कालीमठ मंदिर में विराजमान हैं। भगवान शिव को रुद्र देव के नाम से भी जाना जाता है और रुद्रप्रयाग का नाम भगवान शिव के नाम पर ही पड़ा है। यह क्षेत्र उत्तराखंड में चार धाम तीर्थयात्रियों का प्रवेश द्वार है। भगवान शिव के प्रिय माह श्रावण में रुद्रप्रयाग तंत्रपीठ क्षेत्र में दस महाविद्याओं की पूजा करने से भक्तों को मानसिक और शारीरिक शक्ति का आशीर्वाद मिलता है। वहीं शास्त्रों में शनिवार का दिन देवी मां की पूजा के लिए शुभ बताया गया है। कहा जाता है कि जो भक्त दस महाविद्याओं को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें इस दिन देवी की विशेष पूजा करनी चाहिए। इसलिए तंत्रपीठ कालीमठ मंदिर, रुद्रप्रयाग में शनिवार और श्रावण दर्श अमावस्या के शुभ संयोग पर दस महाविद्या पूजा, रात्रि तंत्र युक्त सूक्त और हवन का आयोजन किया जाएगा