🔹 यमुना जयंती क्यों मनाई जाती है?
यमुना जयंती, जिसे यमुना छठ के नाम से भी जाना जाता है, माँ यमुना के धरती पर अवतरण का शुभ दिन माना जाता है। पुराणों और महाभारत में उन्हें सबसे पवित्र नदियों में से एक बताया गया है, जिनमें पापों को शुद्ध करने और आत्मा को उच्च स्तर तक उठाने की शक्ति मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस पावन दिन माँ यमुना की पूजा करने से आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती है और नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति मिलती है।
🔹 माँ यमुना भगवान कृष्ण से कैसे जुड़ी हैं?
माँ यमुना केवल एक नदी नहीं हैं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का अभिन्न हिस्सा हैं। उनके जन्म के समय से ही, वे श्रीकृष्ण कथा से गहराई से जुड़ी हुई हैं। जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब उनके पिता वासुदेव ने उन्हें उफनती यमुना नदी के पार पहुँचाया। भगवान की दिव्यता को पहचानते हुए, माँ यमुना ने अपने जल को चमत्कारिक रूप से विभाजित कर दिया, जिससे वासुदेव सुरक्षित रूप से पार जा सके। श्रीकृष्ण के बाल्यकाल में भी यमुना का विशेष स्थान रहा। उनके खेल-कूद, पवित्र स्नान और गोपियों के साथ रास लीला सभी यमुना तट पर ही संपन्न हुए। माँ यमुना उनकी लीलाओं की साक्षी बनीं और उनके दिव्य प्रेम की उपस्थिति से अनंतकाल तक पवित्र मानी गई। इसीलिए, यमुना जयंती पर मथुरा के विश्राम घाट पर माँ यमुना का दूध अभिषेक, भव्य आरती और श्रीकृष्ण की विशेष पूजा का आयोजन कराया जा रहा है।
🔹 विश्राम घाट का क्या महत्व है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, विश्राम घाट वही स्थान है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध के बाद विश्राम किया था। इसलिए इसे 'विश्राम' घाट कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर श्रीकृष्ण और माँ यमुना की एक साथ पूजा करने से आध्यात्मिक प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। माँ यमुना का पवित्र दूध अभिषेक भक्तों के जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है, कर्मों के बोझ को हल्का करता है और आंतरिक शांति प्रदान करता है। माँ यमुना और भगवान श्रीकृष्ण की संयुक्त पूजा से एक दिव्य सुरक्षात्मक आभा बनती है, जिससे जीवन में शांति और समृद्धि आती है। यह पूजा उनके आशीर्वाद को पाने का एक दुर्लभ अवसर है, जिससे भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र पूजा में भाग लें और माँ यमुना एवं भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य आशीर्वाद का लाभ प्राप्त करें।