सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है, क्योंकि नवरात्रि के इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वहीं माना जाता है कि नवरात्रि के सातवें दिन यानी सप्तमी तिथि को देवी सरस्वती पूजा की जाती है। इसके अलावा इन नौ दिनों में दस महाविद्याओं की पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इन दस महाविद्याओं में नौवीं महाविद्या हैं देवी मातंगी, जिन्हें देवी सरस्वती का तांत्रिक रूप माना जाता है। माता मातंगी, देवी सरस्वती की तरह ही अपने भक्तों को ज्ञान और 64 विभिन्न कलाओं का आशीर्वाद देती हैं। इनकी पूजा से भक्तों को उच्चतम शिक्षा, करियर में सफलता, व्यवसायिक जीवन में विकास और धन-संपदा का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। ऐसी मान्यता है कि माता सरस्वती की अराधना से भी भक्तों को शिक्षा व व्यवसायिक जीवन में सफल होने का वरदान मिलता है। सरस्वती की तरह, मातंगी अलौकिक शक्तियों के साथ ज्ञान, कला और भाषण की देवी हैं। जो लोग सर्वोच्च ज्ञान, कला और भाषण में उत्कृष्टता और अलौकिक शक्तियां प्राप्त करना चाहते हैं, वे इनकी पूजा करते हैं। हालाँकि दोनों ही विद्या और वाणी को नियंत्रित करती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी अपने साथ कुछ खाने की सामग्री लेकर महादेव और माता पार्वती से मिलने कैलाश पर्वत पर गए। भगवान शिव और माता पार्वती ने विष्णु जी द्वारा लाया गया भोजन किया लेकिन उसके कुछ अंश धरती पर गिर गए। उन अंशों से एक श्याम वर्ण की देवी का जन्म हुआ जो मातंगी नाम से विख्यात हुईं। अन्य शास्त्रों में कहते हैं कि देवी मातंगी हनुमाजी और शबरी के गुरु मतंग ऋषि की पुत्री थीं। मतंग ऋषि के यहां माँ दुर्गा के आशीर्वाद से मातंगी देवी का जन्म हुआ था। देवी सरस्वती की तांत्रिक रूप होने के कारण मां मातंगी की अराधना नवरात्रि में करने से अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसलिए नवरात्रि के शुभ अवसर पर हरिद्वार के आदिशक्ति महाकाली दस महाविद्या सिद्धपीठ मंदिर में मां मातंगी तंत्र युक्त हवन के साथ मां सरस्वती की पूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग ले और देवी से उच्चतम शिक्षा एवं व्यवसायिक जीवन में अपार सफलता का आशीष पाएं।