💰 सनातन धर्म में, प्रत्येक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह पवित्र तिथि भगवान भैरव को समर्पित होती है और भक्तों की सुरक्षा, शक्ति और भीतर के भय को दूर करने के लिए विशेष मानी जाती है। 2025 की यह अंतिम कालाष्टमी और भी शक्तिशाली मानी जाती है, क्योंकि यह पूरे साल की अनसुलझी समस्याओं को समाप्त करने और साहस, स्थिरता और नई ऊर्जा पाने का अवसर प्रदान करती है। ऐसा माना जाता है कि अंतिम कालाष्टमी के निशित काल में स्वर्णाकर्षण भैरव और बटुक भैरव की पूजा करने से आर्थिक समस्याएँ दूर होकर समृद्धि और वृद्धि की प्राप्ति होती है।
💰 शास्त्रों के अनुसार, भैरव का अर्थ है “रक्षक” भैरव को भगवान शिव का प्रचंड और रक्षक अवतार माना जाता है। बटुक भैरव शिव का बाल रूप हैं, जो विशेष रूप से भक्तों को सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि प्रदान करते हैं। धार्मिक कथाओं में बताया गया है कि एक बार माता पार्वती ने दानव दारुका को नष्ट करने के लिए काली रूप धारण किया, लेकिन यह रूप अनियंत्रित बढ़ने लगा। इसे शांत करने के लिए भगवान शिव बालक के रूप में प्रकट हुए और प्रेमपूर्वक उन्हें “माँ” कहा, इसे देखकर पार्वती का क्रोध शांत हो गया और वह अपने शांति पूर्ण रूप में लौट गईं। इसी तरह, स्वर्णाकर्षण भैरव को भगवान शिव का वह रूप माना जाता है जो धन को आकर्षित करता है, गरीबी को दूर करता है और उन छिपी बाधाओं को हटाता है जो समृद्धि में रुकावट डालती हैं।
💰 काशी में भैरव का महत्व और भी गहरा है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वनाथ ने भैरव को काशी का “कोतवाल” नियुक्त किया। इस कारण काशी यात्रा भैरव के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। उनकी कृपा जीवन से नकारात्मकता हटाती है और सुरक्षा व स्थिरता प्रदान करती है। इस पूजा में स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र जाप और बटुक भैरव अष्टकम स्तोत्र का पाठ काशी के दो प्रमुख भैरव मंदिरों में किया जाता है, जो भक्तों की प्रार्थनाओं को सीधे भैरव तक पहुँचाने वाला माना जाता है। यह महापूजा कर्ज कम करने, आर्थिक संतुलन बनाए रखने, मानसिक शांति लाने और नकारात्मक ऊर्जा दूर करने में सहायक मानी जाती है।
श्रद्धालु श्री मंदिर के माध्यम से इस अनुष्ठान में घर बैठे भाग लेकर बाबा भैरव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं✨🙏