🙏 क्या आपके मन में अपनी माता, दादी-नानी और समस्त मातृ पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष प्रार्थना करने की भावना है? यह मातृ श्राद्ध पूजा उनके प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करने का एक दिव्य अवसर है।
श्राद्ध पक्ष की नवमी तिथि ‘मातृ नवमी’ कहलाती है। यह दिन विशेष रूप से माताओं, दादियों-नानियों और परिवार की उन सभी महिलाओं के श्राद्ध के लिए समर्पित है, जो अब इस संसार में नहीं हैं। गया स्थित धर्मारण्य वेदी पर सीता कुंड में किया जाने वाला यह श्राद्ध पूजन इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह वही स्थान है जिसे स्वयं माँ सीता ने अपने पवित्र कर्मों से पावन किया था। यहाँ विद्वान आचार्यों द्वारा प्राचीन परंपराओं के अनुसार मातृ श्राद्ध कराया जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन यहाँ किया गया श्राद्ध पितरों तक माँ सीता के आशीर्वाद के साथ पहुँचता है और आत्माओं को शांति प्रदान करता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माँ सीता यहाँ राजा दशरथ का श्राद्ध करने आए थे, तब आवश्यक सामग्री लाने हेतु राम और लक्ष्मण बाहर गए। इतने में राजा दशरथ की आत्मा प्रकट हुई और तुरंत पिंड दान की इच्छा प्रकट की। माँ सीता ने श्रद्धा से फल्गु नदी की रेत से पिंड बनाए और पिंड दान कर दिया। इस समय उन्होंने फल्गु नदी, गाय, तुलसी, वटवृक्ष और एक ब्राह्मण को साक्षी बनाया। यही स्थान आज ‘सीता कुंड’ कहलाता है। यह स्थान माँ सीता की करुणा और मातृ प्रेम का प्रतीक है और पितृ कर्मों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
इस विशेष मातृ नवमी पर किया गया श्राद्ध मातृ पितरों को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना माना जाता है। जब आत्माएँ प्रसन्न होती हैं तो वे परिवार पर कृपा करती हैं और आशीर्वाद स्वरूप प्रेम, सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती हैं। यह पूजन मातृ पक्ष के पितृ दोष निवारण के लिए भी किया जाता है और आने वाली पीढ़ियों की मंगलकामना हेतु एक महत्वपूर्ण कर्म माना गया है।
🙏 श्री मंदिर के माध्यम से इस पावन अवसर पर सीता कुंड मातृ श्राद्ध पूजा में सम्मिलित हों और अपने मातृ पितरों की आत्मा की शांति की प्रार्थना करें।