कभी-कभी हम पूरी मेहनत और प्रार्थना के बावजूद थकावट और अस्थिरता का अनुभव करते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य और संबंधों को प्रभावित करती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यह अस्थिरता अक्सर ग्रहों की गतिविधियों से बढ़ जाती है, खासकर जब रुद्र की ऊर्जा, जो आर्द्रा नक्षत्र को नियंत्रित करती है, प्रबल होती है। यह समस्या केवल शारीरिक नहीं होती, बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषीय भी होती है।
इस विशेष अनुष्ठान का उद्देश्य इन शक्तिशाली ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं का संतुलन करना है। इस अनुष्ठान में भगवान सूर्य की जीवनदायिनी ऊर्जा और भगवान शिव की शांतिदायक और रक्षक कृपा को आमंत्रित किया जाता है। सप्तमी तिथि और सोमवार के दिन यह अनुष्ठान किया जाता है, जिससे शरीर और मन को शक्ति और शांति प्राप्त होती है।
शास्त्रों के अनुसार भविष्य पुराण में आर्द्रा सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य, जो स्वास्थ्य और जीवन शक्ति के प्रदाता हैं, की पूजा के लिए विशेष माना गया है। वहीं शिव पुराण में सोमवार को भगवान शिव के लिए पवित्र बताया गया है, जो आंतरिक अशांति को दूर करते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह अनुष्ठान दोनों शक्तियों का संगम है।
श्री मंदिर में इस अनुष्ठान के दौरान भगवान शिव के लिए रुद्राभिषेक किया जाता है, जिससे आर्द्रा की प्रबल ऊर्जा संतुलित होती है और मानसिक शांति मिलती है। साथ ही भगवान सूर्य की शक्ति के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया जाता है। पूजा और हवन में अर्पित सामग्री से भक्त की कोशिश प्रतीक रूप में दिखाई देती है कि वे आंतरिक और बाहरी अशांति को संतुलित कर जीवन में स्थिरता लाना चाहते हैं। यह विशेष पूजा श्री मंदिर के माध्यम से आपके जीवन में स्वास्थ्य शांति और सुरक्षा का आशीर्वाद लाती है।