बुरी शक्तियों एवं नकारात्मक प्रभावों के विनाश का आशीष पाने के लिए श्रावण अमावस्या रुद्रप्रयाग तीर्थ विशेष शिव तांडव स्तोत्र पाठ और दिव्य महाकाली पूजन
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श्रावण अमावस्या रुद्रप्रयाग तीर्थ विशेष

शिव तांडव स्तोत्र पाठ और दिव्य महाकाली पूजन

बुरी शक्तियों एवं नकारात्मक प्रभावों के विनाश का आशीष पाने के लिए
temple venue
कालीमठ मंदिर, रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड
pooja date
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बुरी शक्तियों एवं नकारात्मक प्रभावों के विनाश का आशीष पाने के लिए श्रावण अमावस्या रुद्रप्रयाग तीर्थ विशेष शिव तांडव स्तोत्र पाठ और दिव्य महाकाली पूजन

श्रावण का महीना भगवान शिव का अत्यंत प्रिय माह माना जाता है, इस दौरान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त कई अनुष्ठान करते हैं, जिनमें शिव तांडव स्तोत्र भी है। मान्यता है कि श्रावण माह में अमावस्या तिथि भगवान शिव की पूजा के लिए बेहद शुभ मानी गई है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने से जीवन से हर कष्ट से मुक्ति मिल सकती है। शास्त्रों में भगवान शिव की पूजा में शिव तांडव स्तोत्र की बहुत महिमा बताई गयी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्तोत्र की रचना महादेव के परम भक्त रावण ने की थी। इस स्तोत्र का पाठ भय, रोग, दोष, आर्थिक संकटों से मुक्ति के अलावा नकारात्मकता के विनाश के लिए साहस एवं निडरता की प्राप्ति के लिए बहुत प्रभावशाली बताया गया है। कहते हैं कि एक बार जब रावण कैलाश पर्वत को अपने साथ ले जाने के लिए उठा रहा था तब भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया था जिससे रावण के हाथ पर्वत के नीचे दब गए। भयंकर कष्ट की स्थिति में रावण ने भगवान शिव को मनाने के लिए शिव तांडव स्तोत्र को गाया। उसकी स्तुति सुन भगवान शिव प्रसन्न हो गए और रावण को कष्ट से मुक्त कर दिया।

वहीं, अमावस्या की तिथि भी माता काली की पूजा करने के लिए विशेष मानी जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसी दिन मां काली की उत्पत्ति हुई थी। ये विशेष दिन देवी काली के उग्र रूप को समर्पित है। देवी महाकाली अपने भक्तों के जीवन में प्रकाश और आशा की किरण लाती हैं साथ ही नकारात्मकता और अंधकार को दूर करती हैं। देवी काली के उग्र रूप की उत्पति राक्षसों के विनाश करने के लिए हुई थी। यह एक मात्र ऐसी शक्ति हैं जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है। मान्यता है कि रूद्रप्रयाग के कालीमठ मंदिर में देवी ने शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी। शास्त्रों के अनुसार, देवी काली माता पार्वती का उग्र रूप है, इसलिए शिव जी को इनका पति माना गया है। ऐसे में शिव जी के प्रिय माह श्रावण में अमावस्या की शुभ तिथि पर कराई जाने वाली शिव तांडव स्तोत्र पाठ और दिव्य महाकाली पूजन का फल अत्यधिक प्रभावशाली माना गया है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और शिव जी के साथ देवी काली का आशीष पाएं।

कालीमठ मंदिर, रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड

कालीमठ मंदिर, रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड
रुद्रप्रयाग जिले में गुप्तकाशी शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है कालीमठ मंदिर। ये पवित्र मंदिर माँ काली को समर्पित है, जो उग्र देवी के रूप में विराजमान हैं। यहां विराजित मां काली अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके जीवन से बुरी शक्तियों का विनाश करती हैं। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मां काली अपनी बहनों माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ विराजित हैं। इस मंदिर से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर एक दिव्य चट्टान है। इस शीला को कालीशिला के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी।

तब यहां माँ भगवती 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुईं, कालीशिला में देवताओं के 64 यंत्र हैं। असुरों के आतंक के बारे में सुनकर माता का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने क्रोध का रूप धारण कर लिया। युद्ध में माता ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया। इन 64 यंत्रों से मां को मिली थी शक्ति कालीमठ मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है। कालीमठ मंदिर में एक कुंड है, जो चांदी के बोर्ड/श्रीयंत्र से ढका हुआ है। भक्त मंदिर के अंदर स्थित कुंड की पूजा करते हैं, यह पूरे वर्ष में केवल शारदीय नवरात्र में अष्टमी को खोला जाता है। दिव्य देवी को बाहर निकाला जाता है और पूजा भी आधी रात को ही की जाती है, तब केवल मुख्य पुजारी ही उपस्थित होते हैं।

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