शास्त्रों के अनुसार सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, इसलिए सावन माह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस महीने में शिव भक्त उनकी कृपा पाने के लिए पूजा अराधना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के प्रिय भक्तों में शनिदेव भी शामिल हैं। भगवान शिव से ही शनिदेव को नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ, न्यायाधीश और दंडकारक होने का वरदान प्राप्त हुआ था। इसलिए जो लोग श्रावण मास में भगवान शिव और शनिदेव की पूजा करते हैं, उन्हें शुभ फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव का जन्म सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया से हुआ था। जब शनिदेव अपनी माता के गर्भ में थे, तब छाया भगवान शिव की कठोर तपस्या में लीन थीं, यहां तक कि उन्होंने भोजन और जल की भी उपेक्षा कर दी थी। छाया की कठोर तपस्या के कारण बालक शनि भी जन्म के बाद शिव के भक्त बन गए। एक दिन शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से कहा कि मैं हर तरह से आपसे सात गुना बेहतर बनना चाहता हूं।
शनि की उच्च आकांक्षाओं से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें काशी जाकर भगवान शिव की तपस्या करने की सलाह दी और वचन दिया कि उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए शनि देव काशी गए, वहां शिवलिंग का निर्माण किया और भगवान शिव की आराधना आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें ग्रहों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया तथा मृत्यु लोक का न्यायाधीश नियुक्त किया। कठोर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें साढ़े साती और ढैया नामक ग्रहों के प्रभाव का वरदान भी दिया। ज्योतिषियों की मानें तो उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामी शनि है, इसलिए भगवान शिव के प्रिय माह श्रावण एवं भाद्रपद नक्षत्र में भगवान शिव के साथ शनि की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।