सनातन परंपरा में शरद पूर्णिमा की रात को बहुत ही विशेष और दुर्लभ माना जाता है। इस रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों में अमृत तत्व का संचार माना जाता है। पुरानी मान्यताओं में वर्णन मिलता है कि इस रात की साधना अन्य दिनों की तुलना में कई गुना प्रभावशाली होती है। ध्यान, जप और हवन का असर सीधे मन और आत्मा पर पड़ता है। ऐसे समय पर माँ बगलामुखी की आराधना अत्यंत फलदायी मानी जाती है। देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक, मां बगलामुखी को आठवीं महाविद्या माना गया है। इन्हें शत्रु विनाशिनी भी कहा जाता है।
जब जीवन कठिन और अनियंत्रित परिस्थितियों से घिरा होता है, जैसे विवाद, शत्रु का भय या न्यायालय से जुड़े मामले, तब मां बगलामुखी अपने भक्तों के लिए अंधेरे में रोशनी बनकर मार्ग दिखाती है। मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और महाभारत के समय पांडवों ने भी अपने शत्रुओं से विजय प्राप्त करने के लिए मां बगलामुखी की आराधना की थी। मां बगलामुखी की साधना में मूल मंत्र जाप का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में उल्लेख है कि 36,000 बार इस मंत्र का जाप किया जाए तो साधना पूर्ण होती है। इसका कारण यह है कि बगलामुखी मूल मंत्र में 36 अक्षर होते हैं और उसी संख्या के आधार पर 36,000 जाप किए जाते हैं।
इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए इस शरद पूर्णिमा पर उज्जैन में स्थित माँ बगलामुखी मंदिर में विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। इसमें 21 ब्राह्मणों द्वारा शरद पूर्णिमा की रात को माँ बगालमुखी के 36,000 मूल मंत्रों का जाप किया जाएगा। इस साधना का उद्देश्य है जीवन की कठिन परिस्थितियों जैसे शत्रु बाधा, विवाद या बार-बार आने वाली चुनौतियों पर नियंत्रण प्राप्त करना। कहा जाता है कि ऐसी साधना से साधक को मानसिक शक्ति, आत्मबल और निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो सकती है।
🌸 इस शरद पूर्णिमा पर उज्जैन के माँ बगलामुखी मंदिर में होने वाले इस विशेष अनुष्ठान में सम्मिलित होकर साधना के इस अद्वितीय अवसर का हिस्सा बनें।