😔 कभी-कभी जीवन ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य बोझ लगातार हमारे ऊपर है। प्रयास करने के बावजूद कार्यों में देरी होती है, संघर्ष खत्म नहीं होते और मन भारी बना रहता है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो ऐसे कष्टों का कारण अक्सर पिछले कर्मों का प्रभाव और अपूर्ण पितृ ऊर्जा होती है। जब पिछले कर्मों का भार चंद्रमा की अस्थिरता और भगवान शनिदेव की कठोर दृष्टि से जुड़ जाता है, तब जीवन में मानसिक पीड़ा, पारिवारिक असंतुलन और बार-बार आने वाली कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। इनसे मुक्ति पाने के लिए विशेष निशित काल पूजा का विधान बताया गया है।
शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान शनिदेव, जिन्हें अक्सर भय के रूप में देखा जाता है, सच्चे भक्तों को उनके पिछले पापों से मुक्ति देते हैं। इसी प्रकार भगवान चंद्र मन को शांति और परिवार में संतुलन प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार, जब दोनों ग्रहों की संयुक्त पूजा निशित काल में की जाती है, तब भगवान शनिदेव कर्मों का बोझ हल्का करते हैं और भगवान चंद्र मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन प्रदान करते हैं। निशित काल (मध्य रात्रि) को वह समय माना गया है जब मोक्ष और पितृ शांति के लिए की गई प्रार्थनाएँ दिव्य लोक तक पहुँचती हैं।
इस पूजा में कलश अभिषेक शामिल है जिसमें पवित्र जल और सामग्री से अभिषेक कर पिछले कर्मों की शुद्धि का प्रतीक किया जाता है। इसके साथ ही कवच होम किया जाता है, जिसमें विशेष मंत्र अग्नि में अर्पित कर नकारात्मक प्रभावों से रक्षा और पितरों की शांति की प्रार्थना की जाती है। शनि और चंद्र देव की संयुक्त आराधना निशित काल में करने से जीवन में कर्मजन्य बोझ से राहत, आंतरिक शांति और पितृ कृपा प्राप्त होने की मान्यता है।
🙏 श्री मंदिर के माध्यम से यह विशेष पूजा आपके जीवन में शांति, संतुलन और पितृ शांति के आशीर्वाद लेकर आती है।