सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। उत्तरप्रदेश के बृज क्षेत्र में इसे रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर धुन से वृंदावन की गोपियों को आकर्षित कर महारास के लिए वन में बुलाया था। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने कई रूप बनाकर एक ही समय पर सभी गोपियों संग रास किया था और इस रात को अरबो वर्षों के बराबर लंबा कर दिया था। माना जाता है कि गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी। मां कात्यायनी देवी दुर्गा का एक रूप हैं, जो साहस और शक्ति की प्रतीक हैं। इसी कारणवश मान्यता है कि रास पूर्णिमा पर कृष्ण षोडशोपचार वंदना और मां कात्यायनी शक्ति हवन करने से जीवन में प्रेम और आदर्श जीवनसाथी मिलने के साथ सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण हैं, जिसके कारण उन्हें भगवान विष्णु का सबसे संपूर्ण अवतार माना जाता है। ये सोलह कलाएं चंद्रमा की कलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो जीवन की पूर्णता का प्रतीक हैं। ऐसे में जब शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सभी कलाओं से परिपूर्ण होता है तो यह समय भगवान कृष्ण की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर कृष्ण षोडशोपचार वंदना एवं माँ कात्यायनी शक्ति हवन करने से आदर्श जीवनसाथी और मनोकामनाओं की पूर्ती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यदि यह पूजा किसी शक्तिपीठ में की जाए तो यह कई गुना अधिक फलदायी हो सकती है। इसलिए शरद पूर्णिमा पर मथुरा में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक मां कात्यायनी मंदिर में कृष्ण षोडशोपचार वंदना एवं माँ कात्यायनी शक्ति हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान कृष्ण और मां कात्यायनी का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें।