✨ माँ गंगा और यमुना के पवित्र जल से अपने पूर्वजों की आत्माओं की शांति और मोक्ष की कामना करें। 🙏
सनातन धर्म में पितृ पक्ष का समय विशेष और अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा भर नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति गहरी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर भी है। शास्त्रों के अनुसार, इस दौरान पितृलोक से हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा श्रद्धा भाव से किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान को स्वीकार करते हैं। पितृ पक्ष की प्रत्येक तिथि का अलग महत्व बताया गया है, और इन्हीं में से तृतीया तिथि को श्राद्ध तृतीया कहा जाता है। इस दिन किया गया श्राद्ध पितरों की स्मृति और उनके प्रति आदर प्रकट करने का विशेष अवसर माना जाता है।
गरुड़ पुराण में भी स्पष्ट उल्लेख है कि जिन लोगों का उचित अंतिम संस्कार न हो पाया हो या जिनकी आत्मा अधूरी इच्छाओं के कारण अशांत बनी रहे, उनके लिए नारायण बलि और नाग बलि पूजा का विधान बताया गया है। नारायण बलि पूजा को पितृ दोष निवारण से जोड़ा जाता है, जबकि नाग बलि पूजा का मुख्य उद्देश्य नाग या सर्प से जुड़े दोष को शांति देना है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब दोनों पूजाएं साथ की जाएं, तब यह अनुष्ठान अधिक प्रभावी होता है। इन पूजाओं को पवित्र नदियों के तट पर करना विशेष फलदायी माना गया है, क्योंकि गंगा और यमुना जैसी नदियों का जल आत्मा को पवित्र और शांत करने वाला बताया गया है।
यमुना और यमराज से जुड़ी पौराणिक कथा भी इस दिन के महत्व को और गहरा करती है। मान्यता है कि यमराज ने अपनी बहन यमुना को वरदान दिया था कि जो भी उनके पवित्र जल में स्नान करेगा या श्रद्धापूर्वक पूजा करेगा, उसे मृत्यु के भय से मुक्ति का मार्ग प्राप्त होगा। यही कारण है कि श्राद्ध तृतीया जैसे अवसर पर यमुना स्नान और उनकी आराधना का विशेष महत्व है।
इसी परंपरा के आधार पर इस पितृ पक्ष की तृतीया तिथि पर श्री यमुनोत्री धाम और श्री गंगोत्री धाम में नारायण बलि, नाग बलि और यम दंड पूजा तथा श्री गंगोत्री धाम में गंगा दूध अभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि इन दोनों पवित्र स्थलों पर एक साथ पूजा करना पितरों की स्मृति को समर्पित करने का दुर्लभ अवसर है। आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस दिव्य अनुष्ठान में शामिल होकर पूर्वजों को याद करें और उनकी कृपा का अनुभव करें।