ज्योतिष में राहु और चंद्रमा की युति को बहुत संवेदनशील माना जाता है। राहु जीवन में छिपी परेशानियों, भ्रम और मानसिक अस्थिरता का प्रतीक है, जबकि चंद्रमा हमारे मन, भावनाएँ और मानसिक शांति का प्रतिनिधित्व करता है। जब ये दोनों ग्रह एक साथ आते हैं या राहु चंद्रमा को सीधी दृष्टि देता है, तो इसे राहु–चंद्र दोष या चंद्र–राहु ग्रहण दोष कहा जाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक तनाव, भावनात्मक उलझन, चिंता, भय और निर्णय लेने में कठिनाई महसूस कर सकता है। कभी-कभी यह जीवन में अनपेक्षित रुकावटें और अस्थिरता भी ला सकता है, जिससे व्यक्ति भीतर से थका और कमजोर महसूस करता है।
इसी क्रम में साल 2025 का आखिरी राहु नक्षत्र (स्वाति) सोमवार, 15 दिसंबर को पौष कृष्ण एकादशी तिथि में पड़ रहा है। यह दिन राहु–चंद्र दोष से राहत पाने के लिए एक विशेष अवसर माना जाता है। खास बात यह है कि यह साल का आखिरी सोमवार और राहु नक्षत्र का संयोग है, जो पारंपरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवसर का उपयोग अपने मन और भावनाओं को संतुलित करने, मानसिक शांति अनुभव करने और जीवन में स्थिरता लाने के लिए किया जा सकता है।
इस दुर्लभ संयोग में श्री मंदिर के माध्यम से राहु–चंद्र ग्रह दोष निवारण अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में 10,000 चंद्र मूल मंत्रों का जाप किया जाएगा, जबकि राहु पैठानी मंदिर में 18,000 राहु मूल मंत्रों का जाप किया जाएगा। साथ ही हवन और अग्नि अर्पित करने जैसी पारंपरिक विधियाँ भी शामिल हैं। यह अनुष्ठान मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और आंतरिक ऊर्जा को संतुलित करने में सहायक माना जाता है।
इस पूजा में भाग लेने से व्यक्ति अपने भीतर की उलझनों और भावनात्मक दबाव को समझने और नियंत्रित करने की दिशा में ध्यान केंद्रित कर सकता है। यह दिन आंतरिक शक्ति और स्थिरता को महसूस करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है, जिससे व्यक्ति भावनात्मक और मानसिक रूप से हल्का और संतुलित महसूस कर सकता है।
यदि आप भी जीवन में मानसिक दबाव, उलझन या राहु–चंद्र दोष के प्रभाव को अनुभव कर रहे हैं, तो श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष अनुष्ठान में भाग लेकर जीवन में संतुलन और आंतरिक शांति की अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं। ✨🕉️