हिंदू धर्म में एकादशी का दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। पौष मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। पौष पुत्रदा एकादशी को अत्यंत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस शुभ दिन पर पुत्र कामेष्टि हवन करने से अत्यंत शुभ फल कि प्राप्ति होती है। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में वर्णित है कि, त्रेतायुग में गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ को पुत्र कामेष्टि हवन करने की सलाह दी थी। उनके मार्गदर्शन का पालन करते हुए राजा दशरथ ने हवन किया, जिससे उनकी रानियों को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस यज्ञ ने राजा दशरथ को भगवान राम जैसे पुत्र का पिता बनने का दिव्य सौभाग्य प्रदान किया। हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को समर्पित पुत्र कामेष्टि हवन एक महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान माना जाता है।
इसी प्रकार भविष्य पुराण में भी पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व बताया गया है। इस दिन का महत्व स्वयं भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को समझाया था। भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को जो कथा सुनाई उसके अनुसार द्वापर युग में महिष्मति नामक एक नगर था, जिसके राजा महीजित थे। राजा की कोई संतान नहीं थी, इसलिए एक ऋषि की सलाह मानकर उन्होंने पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को समर्पित व्रत और पूजा की। जिसके बाद राजा महीजित को पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा। मान्यता है कि कलियुग में पुत्रदा एकादशी के पावन दिन पर पुत्र कामेष्टि हवन करने से माता-पिता को अपनी संतान की खुशहाली और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए पुत्रदा एकादशी पर दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली में स्थित एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में पहली बार विद्वान पंडितों द्वारा पुत्र कामेष्टि हवन का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और अपने बच्चों की भलाई के लिए भगवान विष्णु से विशेष आशीर्वाद प्राप्त करें।