🙏 क्या आपके पूर्वज आज भी उस शांति की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसके वे सच में अधिकारी हैं?
वैकुंठ एकादशी वर्ष का वह एकमात्र दिन है जब पूर्वजों की मुक्ति का द्वार पूरी तरह खुलता है। यह उन्हें शाश्वत शांति और भगवान के दिव्य धाम तक पहुँचाने का दुर्लभ अवसर देता है। कई भक्तों के लिए सबसे बड़ी प्रार्थना धन या सफलता नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के सुख, शांति और मोक्ष की कामना होती है। हम चाहते हैं कि वे दुःख से मुक्त, भटकन से दूर और जन्म–मृत्यु के चक्र से बाहर हों।
शास्त्रों के अनुसार, वैकुंठ एकादशी भगवान श्री विष्णु को सबसे प्रिय एकादशी है। इसी दिन वैकुंठ द्वार—भगवान विष्णु के दिव्य लोक का प्रवेश द्वार—खुलता है। इस पावन तिथि पर पितृ कार्य (पूर्वजों के लिए किया गया कर्म) करने से उसका फल कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि हर अर्पण भगवान विष्णु की कृपा से सीधे पूर्वजों तक पहुँचता है। इसका परिणाम होता है वैकुंठ प्राप्ति—आत्मा को सर्वोच्च शांति का लोक।
श्रीरंगपट्टनम का पवित्र क्षेत्र इस अनुष्ठान के लिए विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है। पवित्र कावेरी नदी से घिरे इस द्वीप को आदि रंग कहा जाता है और यहाँ भगवान श्री रंगनाथ स्वामी विराजमान हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह भूमि गया क्षेत्र की तरह एक पितृ स्थान मानी जाती है। यहाँ किया गया पितृ तिल तर्पण—जल, काले तिल और कुश के साथ—पूर्वजों को आध्यात्मिक पोषण देता है और उनकी आत्मा को आगे की यात्रा में बल प्रदान करता है।
वैकुंठ एकादशी पर इस तर्पण का पुण्य अनेक गुना बढ़ जाता है। यह तिथि पुराने कर्मों को शांत करती है, पितृ दोष को दूर करती है, भटकी हुई आत्माओं को शांति देती है और परिवार को सुख, समृद्धि व सुरक्षा का आशीर्वाद देती है। कहा जाता है कि सच्चे भाव से किया गया यह कर्म पूर्वजों को परिवार का रक्षक बना देता है, जो पीढ़ियों तक आशीर्वाद देते हैं।
श्री मंदिर के माध्यम से भक्त सही स्थान, सही दिन और सही दिव्य ऊर्जा में यह पवित्र अनुष्ठान कर सकते हैं—और अपने जीवन में शांति, संतुलन और पूर्वजों की कृपा आमंत्रित कर सकते हैं।