उत्पन्ना एकादशी सनातन धर्म में मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु की शक्ति से ‘एकादशी देवी’ का प्राकट्य हुआ था, जिन्होंने मुर नामक दैत्य का वध किया था। इस कारण इस तिथि को सभी एकादशियों की जननी और पापों के विनाश का प्रतीक माना गया है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से पापों का नाश, आत्मिक शुद्धि, पितरों को शांति और भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है।
यह दिन अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना गया है क्योंकि यह आत्मिक जागरण, कर्म शुद्धि और पूर्वजों की कृपा प्राप्ति का विशेष अवसर प्रदान करता है। इस तिथि पर किए गए पितृ दोष शांति अनुष्ठान और गंगा आरती को विशेष फलदायी माना गया है, विशेषकर जब ये वाराणसी जैसे पवित्र तीर्थस्थल में संपन्न हों।
🌙 पितृ दोष शांति महापूजा का महत्व:
शास्त्रों में कहा गया है कि जब पूर्वजों की आत्मा तृप्त नहीं होती या उनका विधिपूर्वक तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान नहीं किया जाता, तो परिवार में असंतुलन, मानसिक अशांति और बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। इसे पितृ दोष कहा गया है। घर में अनचाहे विवाद, आर्थिक रुकावटें या अचानक संकट आना इसके संकेत माने गए हैं। उत्पन्ना एकादशी पर की जाने वाली यह पूजा पितरों की आत्मा को शांति दे सकती है, पितृ दोष को शांत करती है और परिवार में सौहार्द, स्थिरता और सुख का वातावरण बनाती है।
🪔 गंगा आरती और दीपदान का महत्व:
गंगा तट पर की गई आरती और दीपदान को आत्मा की शुद्धि और पितृ तृप्ति का सर्वोत्तम माध्यम कहा गया है। जब अस्सी घाट पर ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चारण, शंखनाद और दीपों की ज्योति से आरती होती है, तो वातावरण दिव्यता से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस क्षण में की गई प्रार्थना और दीपदान से न केवल पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है, बल्कि साधक के जीवन से नकारात्मकता दूर होकर नई ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रवाह होता है।
इस पवित्र उत्पन्ना एकादशी पर श्री मंदिर के माध्यम से वाराणसी में संपन्न होने वाली पितृ दोष शांति महापूजा और गंगा आरती में सम्मिलित होकर आप अपने पूर्वजों की आत्मा को श्रद्धांजलि दे सकते हैं और अपने परिवार के लिए सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।