🌺 सनातन में पुत्रदा एकादशी पर पितृ दोष शांति पूजा अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना के साथ पितरों का स्मरण करने से अधूरी तृप्ति, वंश बाधा और संतान कल्याण संबंधी कष्ट शांत होते हैं। पितृ दोष के कारण जीवन में बार-बार रुकावटें, मानसिक अशांति और पारिवारिक तनाव उत्पन्न हो सकता है। पुत्रदा एकादशी पर विधिवत पितृ शांति पूजा, तर्पण, दान और मंत्र जाप करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इससे वंश वृद्धि, सुख-शांति, संतान सौभाग्य और पितृ कृपा प्राप्त होती है। सबसे बड़ी एकादशी पर होने जा रही यह पूजा कर्मिक दोषों के निवारण का भी श्रेष्ठ अवसर मानी गई है।
🌺 कई भक्तों को पितृ से जुड़े अधूरे विषयों का प्रभाव शांत लेकिन लगातार महसूस होता है—जैसे कामों में बार-बार देरी, घर में भारीपन या प्रयासों के बावजूद पूर्ण शांति न आना। सनातन शास्त्रों के अनुसार, जब दिवंगत आत्माओं को उचित शांति नहीं मिलती, तो उनकी यात्रा अधूरी रह जाती है और उनकी कृपा आगे की पीढ़ियों तक पूर्ण रूप से नहीं पहुंच पाती। इसलिए, पुत्रदा एकादशी को पितृ शांति से जुड़े उपायों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसमें कर्म, जिम्मेदारियों और आध्यात्मिक मुक्ति का संगम शामिल है।
🌺 यह पितृ दोष शांति महापूजा काशी के पिशाच मोचन कुंड और महाआरती अस्सी घाट में संपन्न होती है, जो प्राचीन काल से पितृ मुक्ति के अनुष्ठानों से जुड़े पवित्र स्थल माने जाते हैं। काशी की स्थानीय परंपराओं के अनुसार, यह कुंड अधूरे संस्कारों, अकाल मृत्यु या पितृ उपेक्षा से प्रभावित आत्माओं को शांति प्रदान करने में सहायक है। इस विशेष पूजा के साथ काशी के अस्सी घाट पर मां गंगा महाआरती भी की जाती है, जिसमें उनके पावन जल के माध्यम से दिवंगत आत्माओं की क्षमा, दोष शांति और आगे की यात्रा के लिए प्रार्थना शामिल होती है।
🌺 श्री मंदिर के माध्यम से की गई यह पावन पूजा दिवंगत आत्माओं की शांति और परिवार में सुख-समरसता का आशीर्वाद लाती है।