देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन अत्यंत पावन माना गया है क्योंकि इसी दिन भगवान श्री विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि के सभी शुभ कार्यों का पुनः आरंभ होता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु के जागरण से जीवन में रुके हुए कार्यों में गति आती है और दैवीय आशीर्वाद से सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। इस विशेष अवसर पर वाराणसी में पितृ दोष शांति महापूजा और गंगा आरती का आयोजन अत्यंत फलदायी माना गया है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जब पितरों की आत्मा असंतुष्ट होती है या उनका तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध विधि से नहीं किया जाता, तो इसका प्रभाव परिवार में अस्थिरता, मतभेद और क्लेश के रूप में दिखाई देने लगता है। घर में बिना कारण विवाद बढ़ना, आर्थिक रुकावटें आना या मानसिक तनाव रहना पितृ दोष के लक्षण माने जाते हैं। देवउठनी एकादशी के शुभ दिन पर की जाने वाली पितृ दोष शांति महापूजा पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करती है और परिवार के वातावरण में सौहार्द और स्थिरता लाती है। जब यह पूजा काशी के पवित्र क्षेत्र में की जाती है, तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है क्योंकि वाराणसी स्वयं भगवान शिव की नगरी और मोक्षदायिनी भूमि मानी गई है।
गंगा आरती का इस अनुष्ठान में विशेष स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा तट पर की गई आरती और दीपदान से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। अस्सी घाट पर जब ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चारण, शंखनाद और दीपों की ज्योति के साथ आरती की जाती है, तब वातावरण अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठता है। यह क्षण न केवल पितृ तृप्ति का माध्यम बनता है, बल्कि साधक के जीवन में भी शांति और सकारात्मकता का संचार करता है।
देवउठनी एकादशी के इस पवित्र अवसर पर श्री मंदिर के माध्यम से वाराणसी में आयोजित पितृ दोष शांति महापूजा और गंगा आरती में भाग लें।