सनातन धर्म में जब किसी जातक की कुंडली में सूर्य और शनि एक ही भाव में स्थित होते हैं, तो इसे सूर्य-शनि योग कहा जाता है। चूंकि सूर्य और शनि दोनों में पिता और पुत्र का रिश्ता है, लेकिन दोनों में शत्रुता भी है। इसी वजह से इन दोनों का योग समस्याओं का कारण बन सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिनकी कुंडली में सूर्य-शनि युति होती है, उसे यह दुर्लभ योग पूर्वजों की अशांति और पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़े कर्मों का संकेत देता है। इस योग का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में मानसिक अशांति, करियर में बाधाएं, और मान-सम्मान की कमी का कारण बनता है। जहां एक तरफ सूर्य को आत्मा और सफलता का प्रतीक माना जाता है वहीं शनि, को न्याय और कर्म के देवता के रूप में पूजा जाता है। ये दोनों ग्रह एक-दूसरे के लिए विपरीत ऊर्जा हैं। इसलिए इनकी युति से व्यक्ति के जीवन में निरंतर संघर्ष और मानसिक उलझनें बढ जाती है। पितृ दोष की यह स्थिति न केवल पूर्वजों की आत्मा की शांति को बाधित करती है, बल्कि वर्तमान पीढ़ी पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।
इसलिए काशी जैसी धर्मस्थली पर पितृ दोष शांति पूजा के साथ सूर्य-शनि शांति पूजा का आयोजन किया जा रहा है। इस पूजा में पितृ दोष निवारण के साथ-साथ सूर्य और शनि के मूल मंत्रों का जाप किया जाता है, जो इन दोनों ग्रहों की ऊर्जा को संतुलित करता है। सूर्य की ऊर्जावान और गर्म प्रकृति शनि की ठंडी और न्यायप्रिय ऊर्जा से मेल नहीं खाती, जिससे मानसिक और भावनात्मक अस्थिरता होती है। जहां पितृ दोष शांति पूजा के माध्यम से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलेगी, जिससे उनकी कृपा वर्तमान पीढ़ी को संघर्षों से उबारने में सहायक होती है। वहीं, सूर्य-शनि शांति पूजा के द्वारा करियर में आ रही रुकावटें, मानसिक उलझनें और पहचान से जुड़ी समस्याएं हल होती हैं। यह पूजा न केवल कर्मों को संतुलित करती है, बल्कि जीवन में स्थिरता, मानसिक शांति, और सफलता प्राप्त करने में मदद करती है। इसलिए काशी के पिशाच मोचन कुंड पर पितृ दोष शांति पूजा और सूर्य-शनि शांति पूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इसमें भाग लें और पूर्वजों की आत्मा की शांति और जीवन में संघर्षों को हल करने का आशीर्वाद पाएं।