हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित है। नवरात्रि का आठवां दिन मां दुर्गा के उग्र रूप महागौरी को समर्पित है। यही कारण है कि इसे दुर्गाष्टमी या महाष्टमी भी कहते हैं। दुर्गा अष्टमी पर मां दुर्गा की पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार, एक बार महिषासुर नाम के एक असुर को भगवान ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था। जिसके चलते उसने तीनों लोकों में हमला कर दिया और देवताओं को पराजित कर दिया। इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा जी से मदद मांगी। महिषासुर को केवल एक स्त्री ही हरा सकती थी। इसलिए त्रिदेवों ने अपनी दिव्य शक्तियों से मां दुर्गा को उत्पन्न किया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध चला। इस दौरान महिषासुर ने मां दुर्गा को भ्रमित करने के लिए कई रूप धारण किए लेकिन अंततः उसने जब भैंसे का रूप धारण किया तो मां दुर्गा मौके का फायदा उठाते हुए अपने त्रिशूल से महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों में एक बार फिर से शांति स्थापित की।
शास्त्रों के अनुसार, मां काली भी मां दुर्गा का उग्र रूप हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान किए जातें हैं, जिनमें से मां काली मूल मंत्र जाप एवं काली कर्पूर अष्टकम एक है। नवरात्रि अष्टमी पर काली मूंल मंत्र जाप एवं काली कर्पूर अष्टकम का पाठ करना अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। इसके पाठ से मनुष्य के जीवन से शत्रुओं का नाश हो सकता है। कहते हैं काली कर्पूर अष्टकम में इतनी शक्ति है कि इसका पाठ करने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से अत्यंत बलवान हो सकता है जिससे वो निर्भयता पूर्वक समस्याओं का सामना करता है और जीवन में हर प्रकार के भौतिक सुखों का आनंद प्राप्त कर सकता है। देवी महाकाली अपने भक्तों के जीवन में प्रकाश और आशा की किरण लाती हैं, साथ ही नकारात्मकता और अंधकार को दूर करती हैं। देवी काली एक मात्र ऐसी शक्ति हैं जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है। इसलिए नवरात्रि महाअष्टमी पर कोलकत्ता के शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में 11,000 माँ काली मूल मंत्र जाप और काली कर्पूर अष्टकम पाठ का आयोजन किया जा रहा है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर मां काली का सबसे बड़ा मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर दुखी होकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तब उनके दाहिने पैर का अंगूठा इसी स्थान पर गिरा था। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और मां काली द्वारा निर्भयता प्राप्ति एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीष प्राप्त करें।