हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी का विशेष महत्व होता है। साल में कुल 24 एकादशी होती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्व होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पार्श्व एकादशी के नाम से जाना जाता है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस तिथि के दौरान भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और वे अपनी शयन मुद्रा को बाईं ओर से दाईं ओर करवट बदलते हैं, जिसके कारण इसे पार्श्व एकादशी या परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन न केवल भगवान विष्णु बल्कि बृहस्पति की भी पूजा की जाती है क्योंकि भगवान विष्णु बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस ग्रह को विवाह का कारक माना जाता है।
अगर आपकी कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थिति में है, तो आप अपने वैवाहिक जीवन में सुखी रहेंगे, आपको मनचाहा जीवनसाथी मिलेगा और आपके पार्टनर के साथ कोई विवाद नहीं होगा। लेकिन वहीं, अगर कुंडली में बृहस्पति अशुभ स्थिति है, तो कई तरह की समस्याएं उत्पन्न कर सकता है जैसे: विवाह में देरी या वैवाहिक जीवन में समस्याएं, पार्टनर के बीच विवाद होना। कुंडली में बृहस्पति की प्रतिकूल स्थिति को कम करने के लिए, योगिनी एकादशी पर बृहस्पति ग्रह और भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। इसलिए, पार्श्व एकादशी के शुभ दिन पर मथुरा में विराजित श्री दीर्घ विष्णु मंदिर, में 16000 बृहस्पति ग्रह मूल मंत्र जाप और सुदर्शन हवन का आयोजन किया जा रहा है। वहीं इस पूजा के साथ-साथ गौ पूजन करने से भी भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और एक आदर्श जीवनसाथी एवं रिश्ते का आनंद पाने के लिए आशीष प्राप्त करें।