🌺 कालाष्टमी हर कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है और यह भगवान काल भैरव — भगवान शिव के रौद्र और रक्षक रूप — को समर्पित होती है। लेकिन यह कालाष्टमी साधारण नहीं है; यह पूरे वर्ष की अंतिम कालाष्टमी है। हिंदू परंपरा में किसी तिथि का अंतिम पड़ाव बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह समय होता है पूरे वर्ष की जमा हुई नकारात्मकता, भय, बीमारी और मानसिक बोझ को छोड़ने का।
🌺 अक्सर कोई गहरी आंतरिक रुकावट, कमजोरी या ग्रह दोष हमारी ऊर्जा को कमजोर कर देता है और जीवन में सच्ची खुशियाँ आने से रोकता है। इसलिए हमारे शास्त्र कहते हैं कि अष्टमी तिथियों पर विशेष रूप से कालाष्टमी के दिन देवी की उपासना करनी चाहिए, ताकि दुखों के चक्र को तोड़ा जा सके। मां बृजेश्वरी सहस्रनाम अर्चना और घृत मंडल महाभिषेक इसी उद्देश्य से किए जाते हैं—गहरी शांति और उपचार पाने के लिए।
🌺 कांगड़ा स्थित मां बृजेश्वरी देवी शक्तिपीठ में मां को उपचार देने वाली शक्ति के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यहां मां सती के स्तन गिरे थे, इसलिए यह स्थान पोषण, स्वास्थ्य और शारीरिक-मानसिक घावों को भरने की शक्ति का केंद्र माना जाता है। कहा जाता है कि मां बृजेश्वरी दुख दूर करती हैं, ताकत लौटाती हैं और मन में स्थिरता देती हैं। इसी शक्तिपीठ की ऊर्जा के अनुरूप यहां मां बृजेश्वरी सहस्रनाम अर्चना और 11 किलो घृत मंडल महाभिषेक किया जाएगा।
🌺 इस मंदिर का एक प्राचीन प्रसंग भी इस पूजा को विशेष बनाता है—कथा है कि देव-असुर युद्ध के बाद देवी के घावों को मक्खन से भरा गया, जिससे वे स्वस्थ हुईं। इसी कारण यहां घी या मक्खन चढ़ाने की सेवा को विशेष उपचारकारी माना जाता है। भक्त मानते हैं कि इससे मां की वही उपचार-शक्ति प्राप्त होती है और जीवन में स्वास्थ्य, बल और स्थिरता आती है।
🌺 श्री मंदिर के माध्यम से इस वर्ष में केवल एक बार होने वाली कालाष्टमी पूजा में शामिल होकर मां बृजेश्वरी की उपचार शक्ति और अंतिम अष्टमी की शुद्धि शक्ति का अनोखा संगम प्राप्त किया जा सकता है। यह उन सभी के लिए विशेष रूप से शुभ है जो उपचार, स्वास्थ्य और जीवन में नई मजबूती चाहते हैं।