🔱 सनातन धर्म में गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति को समर्पित माना गया है, जो ज्ञान, संरक्षण और स्थिरता के प्रतीक हैं। वहीं, अमावस्या को देवी तंत्र साधनाओं के लिए अत्यंत शक्तिशाली समय माना गया है। यह वह रात्रि होती है, जब रक्षात्मक ऊर्जाएं अपनी चरम अवस्था में होती है और देवी भद्रकाली शक्ति के उग्र एवं रक्षक रूप की कृपा साधक को नज़रों में न दिखने वाली नकारात्मक ताकतों से सुरक्षा और आंतरिक दृढ़ता और भयानक से भयानक खतरों से दैवीय सुरक्षा की राह दिखा सकती है।
मान्यता है कि मां भद्रकाली का तंत्रोक्त हवन शत्रु बाधा, दुष्ट दृष्टि, अचानक उपजे भय, स्वप्न दोष, घर में असामान्य तनाव और अदृश्य अवरोधों को शांत करने में सहायक है। मां भद्रकाली की शक्ति ‘रक्षा-चक्र’ के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति, परिवार और गृह-ऊर्जा को सुरक्षा प्रदान करती है।
इस विशेष हवन में देवी को समर्पित तंत्रोक्त मंत्रों का उच्चारण, अग्नि में आहुतियाँ, और मंत्र-सिद्ध नैवेद्य का अर्पण किया जाता है। तंत्रोक्त मंत्रों का प्रत्येक अक्षर साधक की चेतना को जाग्रत कर, दैवीय शक्ति को आह्वान करता है। अग्नि में दी जाने वाली आहुतियाँ नकारात्मक ऊर्जा को भस्म कर, साधक के चारों ओर एक अदृश्य सुरक्षा कवच स्थापित करती हैं।
🔱 यह हवन उन लोगों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना गया है:
जिनके जीवन में बार-बार रुकावटें या असफलताएँ आ रही हों।
घर-परिवार में बिना कारण तनाव और अशांति का माहौल हो।
अचानक डर, बेचैनी या उन्नति की चिंता परेशान करती हो।
किसी नज़रबंदी, शत्रुता या अदृश्य बाधा का अनुभव होता हो।
यह अनुष्ठान कुरुक्षेत्र स्थित मां भद्रकाली शक्तिपीठ में होने जा रहा है, जो एक प्राचीन और शक्तिशाली देवी स्थल है। मान्यता है कि यहाँ देवी सती का दाहिना टखना (पग) गिरा था, जिससे यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाने लगा। कहते हैं कि महाभारत काल में पांडवों ने इसी शक्तिपीठ में विजय की कामना से पूजा की थी और यहां अपने केश अर्पित करने का संकल्प लिया था। श्री मंदिर द्वारा इस अनुष्ठान में भाग लेने का अवसर हाथ से न जाने दें।