मान्यता है कि दिवाली की अमावस्या की रात ब्रह्मांडीय ऊर्जा अपने चरम पर होती है और इसी समय देवी साधना की शक्ति सबसे अधिक प्रभावशाली मानी जाती है। यह रात साधना के लिए विशेष अवसर प्रदान करती है, जब व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संतुलन स्थापित कर सकता है। आज के समय में व्यक्ति भले ही भौतिक रूप से सक्षम हो, फिर भी अक्सर मानसिक अस्थिरता, चिंता और ऊर्जा की कमी महसूस करता है। ऐसे में आध्यात्मिक साधना और भौतिक समृद्धि दोनों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक हो जाता है।
इसी उद्देश्य से दिवाली अमावस्या की महारात्रि पर “ललिता सहस्रनाम पाठ और नववरण श्री यंत्र पूजा” का आयोजन किया जा रहा है। यह श्री विद्या अनुष्ठान माँ त्रिपुरसुंदरी की दिव्य शक्ति से साधक को जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक लाभ दोनों प्रदान करता है। माँ त्रिपुरसुंदरी देवी दस महाविद्याओं में से सर्वोच्च और प्रमुख मानी जाती हैं। वे सृष्टि की अधिष्ठात्री, सौंदर्य और ज्ञान की देवी हैं, जो भोग और मोक्ष दोनों का दान करने वाली पूर्ण शक्ति हैं।
शास्त्रों के अनुसार, ललिता सहस्रनाम पाठ देवी के एक हजार नामों का वंदन है। इसका नियमित पाठ जीवन में सफलता, सम्मान, स्वास्थ्य और स्थिरता लाने में सहायक होता है। यह स्तोत्र नकारात्मक प्रभाव और कठिनाइयों को कम करता है और मन को शांत व स्थिर बनाता है। कहते हैं कि जब साधक इस अनुष्ठान से जुडता है, तो उसे मानसिक संतुलन और आत्मबल का अनुभव हो सकता है। इस पाठ से घर-परिवार में सुख और शांति बनी रहती है और वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
साथ ही, नववरण श्री यंत्र पूजा माँ त्रिपुरसुंदरी की विशेष आराधना का एक महत्वपूर्ण रूप है। यह यंत्र माँ की शक्ति का प्रतीक है और नौ चरणों के माध्यम से साधक देवी के नौ आवरणों की पूजा करता है। इस पूजा से जीवन में मानसिक स्थिरता, सुरक्षा और संकटों से राहत का अनुभव होता है। दिवाली अमावस्या के दिन यह अनुष्ठान विशेष रूप से प्रभावी और पलहै क्योंकि इस रात माँ त्रिपुरसुंदरी के आशीर्वाद और शक्ति की संभावना अधिक मानी जाती है।
यह संपूर्ण श्री विद्या अनुष्ठान प्रयागराज के शक्तिपीठ ललिता माता मंदिर में विधिपूर्वक संपन्न किया जा रहा है। भक्त श्री मंदिर के माध्यम से इस अनुष्ठान में भाग लेकर माँ त्रिपुरसुंदरी की दिव्यता और शक्ति से सीधे जुड़ सकते हैं।