हिंदु पंचांग के अनुसार, हर साल अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ललिता पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन देवी ललिता ने 'भांडा' नामक राक्षस को मारने के लिए प्रकट हुई थीं, जो कि कामदेव के शरीर की राख से उत्पन्न हुआ था। यही कारण है कि नवरात्रि के पांचवे दिन पड़ने वाली यह तिथि मां ललिता की पूजा के लिए सबसे शुभ मानी जाती है। मां ललिता, दस महाविद्याओं में से एक हैं, जिन्हें मां त्रिपुर सुंदरी, राजराजेश्वरी, कामाक्षी व षोडशी के नाम से भी जाना जाता है। मां ललिता का स्वरूप सौम्य है और उन्हें तीनों लोकों में सबसे सुंदर माना गया है। जिस तरह माता के 16 वर्ष की आयु के स्वरूप को षोडशी कहा जाता है, उसी तरह ‘मां ललिता’ त्रिपुर सुंदरी का विवाहित रूप हैं। माँ ललिता शक्ति की वह रूप हैं जो प्रेम, सौहार्द और पुरुष तथा स्त्री ऊर्जा के दिव्य मिलन का प्रतीक हैं। इस रूप में माँ ललिता दांपत्य जीवन में प्रेम, संतुलन और आध्यात्मिक सम्पन्नता का आशीर्वाद देती हैं। शास्त्रों की मानें तो ललिता पंचमी के शुभ दिन पर देवी ललिता का कुमकुम अर्चन करना अत्यंत प्रभावशाली होता है। इस अनुष्ठान के जरिए हम देवी का आशीष पा सकते हैं जिससे रिश्तों में आनंद, समझ और आपसी सम्मान बना रहे।
हिंदू धर्म में कुमकुम यानि सिंदूर का विशेष महत्व होता है, इसे शुभता और वैवाहिक सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त माता ललिता का 1,00,000 लक्ष कुमकुम अर्चन करते हैं, वो माता से प्रेमपूर्ण एवं सामंजस्यपूर्ण जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कहते हैं कि जब एक स्त्री सिंदूर लगाती है, तो यह न केवल उसके विवाह का प्रतीक होता है, बल्कि यह उसे देवी के रूप में भी मान्यता देता है। यह देवी रूप शक्ति, सौंदर्य, और दिव्यता का प्रतीक है। इसलिए ललिता पंचमी के शुभ अवसर पर तिरुनेलवेली में स्थित एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में 1,00,000 लक्ष कुमकुम अर्चन के साथ ललिता हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष महाअनुष्ठान में भाग लें और देवी ललिता से रिश्तों में खुशहाली का आशीर्वाद प्राप्त करें।