🛕 यदि जीवन में बार-बार बिना किसी कारण के काम बिगड़ रहे हैं, विवाह, संतान और करियर में रुकावटें थमने का नाम नहीं ले रहीं, तो यह पितृ दोष का संकेत हो सकता है। ऐसा माना जाता है कि जब पूर्वजों की आत्मा तृप्त नहीं होती या उनके लिए विधिवत श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान नहीं किए जाते तो वे अशांत रह जाते हैं और उनका यह असंतोष घर-परिवार में रुकावटें पैदा करता है। साल 2025 की आखिरी पूर्णिमा ऐसे अनुष्ठानों के लिए सबसे शुभ दिन हो सकता है। जब यह अनुष्ठान 3 तीर्थों में एक साथ, एक ही दिन आयोजित होता है तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
🍃 मान्यता है कि इस शांति पूजा और यज्ञ से जीवन में आर्थिक अस्थिरता, वैवाहिक बाधाएं, संतानों से जुड़ी परेशानियां और शारीरिक-मानसिक रोग शांत होते हैं। पितृ दोष को शांत करने के लिए केवल सामान्य पूजा काफी नहीं मानी जाती, बल्कि एक गहन और शास्त्रों में सुझाई गई विधि की ज़रूरत होती है। विद्वानों द्वारा किया जाने वाला यह अनुष्ठान पितरों को संतोष, शांति और मोक्ष की सही दिशा तक ले जा सकता है।
🛕 मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन पितृ लोक के द्वार खुले रहते हैं और पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं। इस वर्ष पितृ पक्ष और भी विशेष है क्योंकि सौ साल बाद ऐसा संयोग बना है, जब इसकी शुरुआत और समापन दोनों ही ग्रहण के साथ हो रहे हैं। ऐसे दुर्लभ समय में पितृ शांति पूजा और यज्ञ का आयोजन करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस उपासना से पितृ दोष का निवारण होता है, जीवन की बाधाएं कम होने लगती हैं और परिवार पर सुख, शांति और समृद्धि की कृपा सक्रिय होती है।
इस वर्ष यह पितृ शांति अनुष्ठान एक नहीं, बल्कि 3 पवित्र मोक्षदायी तीर्थों पर एक साथ संपन्न होगा काशी के पिशाच मोचन कुंड, रामेश्वरम घाट और गोकर्ण क्षेत्र। ऐसा विश्वास है कि इन तीनों स्थानों पर संयुक्त रूप से की गई पितृ शांति पूजा से पितरों की तृप्ति होती है और परिवार को नई सकारात्मक दिशा मिलती है।
काशी, मोक्ष की नगरी, जहां पिशाच मोचन कुंड में गरुड़ पुराण के अनुसार पिंडदान से पितरों को शीघ्र राहत की दिशा मिलती है और वंश परंपरा में स्थिरता आती है।
रामेश्वरम घाट, वह तीर्थ है, जहां मान्यता है कि स्वयं भगवान श्रीराम ने अपने पितरों के लिए जल तर्पण कर श्राद्ध परंपरा को आगे बढ़ाया था।
गोकर्ण क्षेत्र, आत्मलिंग की भूमि है, जहां कोटितीर्थ और समुद्र संगम पर त्रिपिंडी तर्पण पूर्वजों को लंबे समय तक शांति और वंशजों को पितृ आशीष प्रदान करता है।
श्री मंदिर के माध्यम से पूर्णिमा पर इस विशेष त्रि-तीर्थ पितृ शांति अनुष्ठान में भाग लें और पूर्वजों की आत्मा शांति-मोक्ष, परिवार में समृद्धि और खुशहाली की दिशा पाएं।