✨ त्रिवेणी संगम में माघ मेला सनातन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण आध्यात्मिक आयोजन है। यह पौष शुक्ल पूर्णिमा से आरंभ होकर माघ मास की शुरुआत का संकेत देता है। शास्त्रों के अनुसार इस समय प्रयाग तीर्थराज कहलाता है, यानी सभी तीर्थों में श्रेष्ठ। विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण में कहा गया है कि माघ मास में प्रयाग में किया गया एक स्नान हजारों अश्वमेध यज्ञों के समान पुण्य देता है और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष—चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति का मार्ग खोलता है। विशेष रूप से प्रथम शाही स्नान का बहुत बड़ा महत्व है। इस काल में त्रिवेणी संगम पर किए गए सभी धार्मिक कर्म कई गुना फल देते हैं। यह समय पितृ शांति और पूर्वजों को शांति देने के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।
जब किसी परिवार में बार-बार झगड़े, बीमारी, आर्थिक परेशानी या बिना कारण नकारात्मकता बनी रहती है, तो शास्त्र हमें अदृश्य कारणों पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। मान्यता है कि यदि पूर्वज किसी कारणवश अशांत हों, तो इसे पितृ दोष कहा जाता है, जो परिवार की शांति को प्रभावित करता है। 3 तीर्थ पितृ शांति पूजा और यज्ञ पूर्वजों को संतुष्ट करने और पारिवारिक सुख-शांति लौटाने का एक पवित्र उपाय है। श्रद्धा से संकल्प लेकर पिंड दान, तर्पण और प्रार्थना करने से जीवित और दिवंगत आत्माओं के बीच शांति का सेतु बनता है।
🌟 यह विशेष पूजा तीन मोक्षदायी तीर्थों में संपन्न की जाती है:
काशी (वाराणसी): भगवान शिव की नगरी, जहाँ पिशाच मोचन कुंड और अस्सी घाट पर किए गए कर्म पितरों को शांति और मोक्ष प्रदान करते हैं।
गोकर्ण क्षेत्र: दक्षिण काशी कहलाने वाले इस तीर्थ में पितृ शांति कर्म भगवान विष्णु की कृपा से पितरों को क्षमा और मुक्ति दिलाते हैं।
त्रिवेणी संगम (प्रयाग): गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर पितृ तर्पण और महायज्ञ के माध्यम से प्रार्थनाएँ उच्च लोकों तक पहुँचती हैं।
जब ये तीनों अनुष्ठान एक साथ इतने शुभ दिन पर किए जाते हैं, तो मान्यता है कि पूर्वज अत्यंत प्रसन्न होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देते हैं, जिससे लंबे समय से चली आ रही परेशानियाँ दूर होती हैं और घर में सुख, शांति और स्थिरता आती है।
🙏 श्री मंदिर के माध्यम से इस त्रि-तीर्थ पितृ अनुष्ठान में सहभागी बनकर आप अपनी पीढ़ी के लिए पूर्वजों का स्थायी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।