हमारे सनातन धर्म में माँ काली को समय, शक्ति और संहार की देवी कहा गया है। उनका रूप जितना तेजस्वी और प्रचंड है, उतना ही दयालु और करुणामय भी है। माना जाता है कि जब संसार में अंधकार, भय या अन्याय बढ़ जाता है, तब माँ काली प्रकट होकर बुराई का नाश करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। उनका स्वरूप हमें यह सिखाता है कि जो व्यक्ति अपने भीतर के डर और नकारात्मकता को जीत लेता है, वही सच्चे अर्थों में जीवन का प्रकाश पाता है। काली चौदस का दिन माँ काली की आराधना का विशेष अवसर होता है। यह पर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली से एक दिन पहले आता है। इसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि इस रात माँ काली की शक्ति सबसे अधिक सक्रिय होती है। इस दिन सच्चे मन से पूजा करने से जीवन से अंधकार, भय और अशुभता दूर होती है। काली चौदस की पूजा सिर्फ नकारात्मक शक्तियों को शांत करने के लिए नहीं, बल्कि धन, समृद्धि और सुरक्षा पाने के लिए भी की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि माँ काली की कृपा से आर्थिक परेशानियाँ दूर होती हैं, जीवन में स्थिरता आती है और आत्मविश्वास बढ़ता है। उनकी उपासना से व्यक्ति में नई ऊर्जा और हर कठिनाई से लड़ने की शक्ति आती है। इसी कृपा के आहवान के लिए महाकाली धन रक्षा पूजा एवं महायज्ञ का आयोजन पवित्र कालिघाट शक्तिपीठ में किया जा रहा है। जहाँ माँ काली का तेज और आशीर्वाद प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया जा सकता है। यहाँ की गई पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस दिव्य पूजा में भाग लेकर माँ काली की कृपा पा सकते हैं। यह सिर्फ पूजा का दिन नहीं, बल्कि अपने भीतर की शक्ति को जगाने का अवसर है। माँ के आशीर्वाद से जीवन में आत्मबल, सकारात्मकता और समृद्धि आती है जिससे दीपावली का यह समय सच्चे अर्थों में प्रकाश और खुशहाली से भर उठता है।