राहु और केतु के संयोग से बनने वाले कालसर्प दोष को ज्योतिष शास्त्र में सबसे अशुभ योगों में से एक माना गया है। इस दौरान व्यक्ति को कई चुनौतियों जैसे स्वास्थ्य, आर्थिक, मृत्यु भय एवं मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पद्म पुराण के अनुसार, नागराज तक्षक द्वारा काटे जाने के बाद राजा परीक्षित के वंशजों ने तक्षकेश्वर तीर्थ मंदिर में पांच शिवलिंगों की प्रतिष्ठा की थी ताकि उनके परिवार को मृत्यु भय से मुक्ति मिले एवं भविष्य में उनके परिवार पर सर्प दोष ना आये। तभी से यह मान्यता है कि जो भी यहां इस प्राचीन मंदिर में पूजा करवाता है उसे कालसर्प दोष से मुक्ति और मानसिक स्थिरता मिलती है। यमुना तट पर स्थित यह मंदिर करीब 5000 साल पुराना है।
माना जाता है कि इस दोष से मुक्ति के लिए केतु द्वारा शासित मघा नक्षत्र में की गई काल सर्प दोष पूजा अत्यधिक प्रभावशाली होती है। वहीं केतु के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए बुधवार का दिन अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसे में बुधवार एवं मघा नक्षत्र के इस शुभ संयोग पर श्री मंदिर के माध्यम से काल सर्प दोष शांति पूजा और रूद्राभिषेक के द्वारा भाग लें और भोलेनाथ के आशीष से इस अशुभ दोष से मुक्ति का आशीष पाएं।