🔱 वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू पंचांग के सबसे पवित्र दिनों में से एक है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है, ठीक कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले। इस दिन का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की संयुक्त उपासना की जाती है — जो हिंदू परंपरा में बहुत ही दुर्लभ और अत्यंत शुभ मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन हरि-हर की पूजा करने से जीवन में भोग (सुख, समृद्धि) और मोक्ष (आध्यात्मिक कल्याण) दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वैकुंठ चतुर्दशी का यह समय, दोनों देवताओं की संयुक्त कृपा पाने का अद्वितीय शुभ मुहूर्त माना जाता है।
🔱 इस दिन से जुड़ी कथा अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण है। पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान श्री विष्णु काशी आए और भगवान शिव की पूजा हेतु एक हजार कमल पुष्प अर्पित करने का संकल्प लिया। पूजा के समय जब एक कमल कम मिला, तो भगवान विष्णु ने बिना एक पल सोचे अपने कमल समान नेत्र को अर्पित करने का निश्चय किया। उनकी इस अनुपम भक्ति और समर्पण को देखकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए, विष्णु जी का नेत्र पूर्ववत कर दिया और उन्हें दिव्य सुदर्शन चक्र का वरदान दिया। यह कथा दर्शाती है कि जब हम भगवान शिव और भगवान विष्णु — दोनों की भावपूर्ण भक्ति करते हैं, तो जीवन में पूर्ण और अखंड आशीर्वाद प्राप्त होता है।
🔱 इस विशेष हरिहर मिलन पूजा और 1100 बिल्व-तुलसी अर्चना का उद्देश्य यही दिव्य ऊर्जा को जीवन में स्थापित करना है। भगवान शिव को प्रिय बिल्वपत्र और भगवान विष्णु को प्रिय तुलसी दल अर्पित कर हम दोनों देवों की एकता को सादर नमन करते हैं। जब यह पूजा पवित्र ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में संपन्न होती है, जहाँ दोनों देवों की कृपा मानी जाती है, तब यह अनुष्ठान पिछले कर्मों को शांत करने और जीवन में शांति-संतुलन लाने में अत्यंत प्रभावकारी माना जाता है।
श्री मंदिर के माध्यम से इस पावन पूजा में सम्मिलित होकर आप अपने जीवन में शांति, समृद्धि और संपूर्ण कल्याण का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। ✨🙏