कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा का दिन ऐसा माना जाता है जब देवताओं और पितरों दोनों की कृपा एक साथ प्राप्त होती है। इस पवित्र रात्रि में किए गए कर्म और उपासना साधारण से कहीं अधिक फलदायी मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन किया गया पितृ शांति और तर्पण अनुष्ठान पितरों की आत्मा को शांति और उन्नति प्रदान करता है तथा जीवन में रुके हुए कार्यों में गति लाता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस कार्तिक पूर्णिमा पर गोकर्ण क्षेत्र में विशेष पितृ शांति पूजा एवं तिल तर्पण अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। गोकर्ण, जिसे दक्षिण काशी कहा जाता है, पितृ अनुष्ठानों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है। यहाँ की भूमि की आध्यात्मिक शक्ति ऐसी मानी जाती है कि श्रद्धा से किया गया प्रत्येक तर्पण पितरों तक सीधे पहुँचता है और उन्हें संतुष्टि प्रदान करता है।
तिल तर्पण इस अनुष्ठान का मुख्य भाग है, जिसमें तिल और जल से पितरों को श्रद्धा अर्पित की जाती है। ऐसा विश्वास है कि यह अर्पण पितरों के लिए अमृत के समान होता है, जिससे वे तृप्त होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। वहीं पितृ शांति पूजा उन कर्मिक ऋणों को शांत करने के लिए की जाती है जो जीवन में बार-बार रुकावटें, तनाव या असंतुलन उत्पन्न करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब पितृ प्रसन्न होते हैं, तो परिवार में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रवाह स्वतः आरंभ होता है। इस दिन किया गया तर्पण और पूजा न केवल दिवंगत आत्माओं के कल्याण के लिए होती है, बल्कि जीवितों के जीवन में भी सामंजस्य और स्पष्टता लाती है।
गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि कार्तिक पूर्णिमा पर पितृ कर्म करने से पितरों को विशेष संतोष मिलता है और वे अपने वंशजों के सभी संकटों को दूर करने की शक्ति प्रदान करते हैं। गोकर्ण क्षेत्र की यह भूमि पितृ मुक्ति का प्रतीक मानी जाती है, जहाँ प्रत्येक श्रद्धा से किया गया अर्पण सात जन्मों के कर्म बंधनों को शुद्ध करने में सहायक होता है।
✨ इस कार्तिक पूर्णिमा पर गोकर्ण तिल तर्पण एवं पितृ शांति पूजा के माध्यम से अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करें और उस संतुलन को अनुभव करें जो पितृ आशीर्वाद से जीवन में शांति और प्रगति लाता है।