🐍 शास्त्रों के अनुसार, नक्षत्रों और दिव्य शक्तियों का गहरा संबंध होता है। इनमें से अश्लेषा नक्षत्र को नागों का निवास माना गया है। इसका प्रतीक सर्प का कुंडल है, जो इसकी गहन और प्रबल ऊर्जा को दर्शाता है। नाग देवता अत्यंत आध्यात्मिक शक्ति से युक्त होते हैं। जब वे प्रसन्न होते हैं, तो संरक्षण, ज्ञान और सौभाग्य प्रदान करते हैं, जबकि अप्रसन्न होने पर जीवन में विभिन्न प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। विद्वानों के अनुसार, नए साल का पहला अश्लेषा नक्षत्र, नागों की ऊर्जा के धरती पर सबसे प्रभावी होने का समय है और इस दिन उनकी आराधना विशेष फलदायी हो जाती है।
🐍 इसी अवसर पर ‘नागबलि’ नामक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। ‘बलि’ का अर्थ है श्रद्धापूर्वक अर्पण। इस पूजा का उद्देश्य नाग देवताओं का सम्मान करना और उनसे किसी भी जाने-अनजाने दोषों के लिए क्षमा प्रार्थना करना है, जो हमारे या हमारे परिवार से कभी हुए हों। यह अनुष्ठान कर्नाटक स्थित ‘दक्षिण के काशी’ कहे जाने वाले गोकर्ण क्षेत्र में आयोजित किया जा रहा है। गोकर्ण वह स्थान है, जहां भगवान शिव का आत्मलिंग विराजमान है। भगवान शिव स्वयं नागों के अधिपति हैं और वासुकी नाग को अपने गले में धारण करते हैं। इसलिए नए साल में यह अनुष्ठान आपके कर्म संबंधी पापों की शुद्धि के लिए बेहद फलदायी हो सकता है।
🐍 नागों के नक्षत्र एवं विशेष काल में इस पवित्र भूमि की नागबली पूजा, महादेव और नाग देवता, दोनों का आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम मानी गई है। मान्यता है कि नागों की नाराज़गी से सर्प दोष उत्पन्न हो सकता है, जिससे विवाह में विलंब, संतान सुख में बाधा, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां और कार्यों में असफलता जैसे दोष सामने आते हैं। अश्लेषा नागबलि पूजा के माध्यम से भक्त उस दिव्य प्रार्थना से जुड़ सकते हैं, जिसके माध्यम से वह नाग देवता की प्रचंड शक्ति से ‘सुरक्षा कवच’ का आशीष प्राप्त कर सकते हैं।
🙏 श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र अवसर पर गोकर्ण क्षेत्र में अश्लेषा नागबलि पूजा में शामिल होकर, नाग देवताओं के आशीर्वाद से नकारात्मकता और कर्म बाधाओं से राहत की प्रार्थना करें।